मुझे साँपों से कोई वैर नहीं है।
डर ज़रूर लगता है। आप कितने ही कहते रहें इतने प्रतिशत साँप भारत में बिना ज़हर के
होते हैं परंतु भाई साब सब साँप डराने का तो फुल-फुल माद्दा रखते हैं। और मेरे
जैसे बाबू को डराने को किसी भी प्रजाति का साँप पर्याप्त होगा। मैंने ज़िंदगी भर
बाबूगिरी की है मेरी तो बॉस की एक झिड़की से ही घिग्घी बांध जाती थी। यूं मुझे आदत
पड़ जानी चाहिए थी किन्तु साँप फिर भी साँप होता है। चलती ट्रेन में उसकी बर्थ
शिफ्ट भी नहीं हो सकता कि टी.टी. आए और चार्ट देख कर बताए आप की बर्थ यहाँ नहीं आप
ब्रेक-वैन में जाएँ। मैं बस ये कह रहा था
की साँपों को भी हक़ है कि वे ए.सी. में यात्रा करें। कोई कब तक रेंगता रहे। अब सभी
तो फ्लाइंग स्नेक नहीं न होते हैं। मेरा कहना है कि क्या साँप के पास वैलिड टिकट
था ? यदि था तो क्या सीट का रिज़र्वेशन था? जिस तरह से वो ए.सी.
डक्ट से लटक रहा है यह पक्का है कि उसकी सीट ‘साइड-लोअर’ रही होगी। आपने अब तक
अंग्रेजी फिल्म ‘स्नेक इन फ्लाइट’ देखी थी जिससे पूरे विमान में अफरा-तफरी मच जाती
है वो भी जब विमान में आसमान में है। यहाँ तो एक साँप ने ही यात्रियों में ऐसा बावेला
मचाया कि सबने तड़ातड़ी पूरा कोच खाली कर दिया। वे दूर से देख रहे थे कि साँप अब
क्या करता है अब क्या करता है। यात्रियों के पास साँप से बचने का कोई रक्षा कवच
नहीं था।
रेल ने बहुत तरक्की की है। कहाँ
पहले आप रेल में केवल जूं, खटमल, कॉकरोच और चूहे देख पाते थे अब भारतीय रेल आपके लिए शोकेस कर रही है भारतीय
साँपों की भिन्न-भिन्न प्रजाति बोले तो स्नेक-सफारी। आखिर हमारे देश को
‘स्नेक-चार्मर’ का देश यूं ही तो नहीं कहा जाता। हम साँपों की पूजा करते हैं। हमने
बीसियों फिल्में साँपों को लेकर बनाईं हैं। मदारी, सपेरों से लेकर फिल्म प्रोडक्शन तक साँप हमारे लिए सदैव नफे का सौदा रहे हैं। नागमणि से लेकर ज़हर तक के लिए साँप हमारा
साथी है, नाग-देव है। देवता क्या करते हैं? देवता देते हैं सो हम
ले रहे हैं। पहले दफ्तरों में चूहे फाइल कुतर जाते थे अतः बिल्ली पाली जाती थीं ताकि
वह चूहों का सफाया कर सके। हो सकता है इसी तर्ज़ पर चूहों का सफाया करने साँप ड्यूटी पर हो।
अब रेलवे को चाहिए कि साँपों के लिए
अलग से एक ‘स्नेक-स्पेशल’ चलाये। जैसे हॉलिडे स्पेशल चलती है, वैसे ही। क्या पता ये साँप बेचारा, समस्त साँप-समाज की तरफ से वो ही केस रखने आया हो। हमारे लिए भी एमू, डेमू, मेमू नहीं सर्पू ट्रेन चलाई जाये। नागिन-एक्स्प्रेस, साँप-मेल अथवा सर्प-भारत चलाई जाएं। मेरी पूरी हमदर्दी साँपों के साथ है।
खासकर नागपंचमी के त्योहार के अवसर पर इस तरह की ट्रेन चलाई जाया करें। आखिर आप
अन्य त्योहारों पर श्रद्धालुओं के लिए ट्रेन चलाते ही हो। मैंने सुना है पालतू
शिकारी बाजों के लिए शेख लोग पूरी कि पूरी फ्लाइट बुक कर लेते हैं। एक हमारे साँप
हैं बेचारों की सुधि लेने वाला कोई नहीं।
साँप अब रेगेंगे नहीं वक़्त आ गया है कि
वे भी सम्मानपूर्वक ट्रेन में, विमान में यात्रा
करें। आप सम्मान देंगे तो सम्मान पाएंगे।
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