(नौकरशाही ने फैसला लिया है नौयडा का पृथक कल्चरल कैलेंडर
अपनाने का)
एक कहावत है
‘जब मैं कल्चर शब्द सुनता हूँ तो अपनी बंदूक की ओर बढ़ता हूँ’। पहले ऐसा कहा जाता
था कि भारत में एक ही कल्चर जानी जाती है और वह है एग्रीकल्चर (इसे प्रायः पंजाब
के लिए भी विनोद में कहा जाता रहा है) अब देखिये कल्चर बहुत ही मज़ेदार टर्म है। यह
कभी पुराना नहीं पड़ता। जब कुछ नहीं था तब कल्चर थी, आज जब लगता है सब कुछ है, भले ई.एम.आई. पर
सही, यह भी कल्चर का हिस्सा है। भूख भी कल्चर है, ठूंस-ठूंस कर
खाना भी कल्चर है। गोया कि कोई एक रिवाज कल्चर है तो ठीक उसका उलट भी कल्चर ही
कहलाता है।
अब आप
देखिये पहले होटल/रेस्टोरेंट में खाना ऐश और लक्जरी का प्रतीक था। मजबूरी अथवा बतौर अय्याशी होटलों में खाया जाता
था। जबकि आजकल बात-बात पर या कहिए हर बात पर होटल याद आता है। उसी तरह पहले ट्यूशन
पढ़ना अच्छा नहीं माना जाता था। ऐसे बच्चों को
अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था। आज अगर आप अपने बच्चे को कोचिंग नहीं
कराते हैं तो आप अपने ही बच्चों के दुश्मन हैं।
एक
क्षेत्र विशेष की कल्चर दूसरे हलके में भी
कल्चर मानी जाये ऐसा जरूरी नहीं। बहुत कन्फ़्यूजन रहता है। इसी कन्फ़्यूजन में इजाफा
करने को अब तय किया है कि नौयडा का अपना अलग कल्चरल कलेंडर बनाया जाएगा। नौयडा की
ट्रेजिडी ये है कि यह यू.पी. में है या दिल्ली में है। यहाँ दिल्ली की कल्चर
चलेगी/मनाई जाएगी या फिर यू.पी. के रीति-रिवाज मान्य होंगे। मनाए जाएँगे।
अब सवाल ये है
कि मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं। इसका हल नौयडा ने निकाल लिया। नौयडा ने डिक्लेयर
किया है कि हम अपना अलग ही कल्चर रखेंगे...हम अपना अलग ही कल्चरल कलेंडर रखेंगे।
ये हुई न बात। इस कलेंडर में मैं चाहूँगा कि सभी वर्गों का ख्याल रखा जाये। जैसे
कि आटो वालों का, उन्हें वहीं नहीं जाना होता जहां आप जाना चाहते
हो। अगर जाना भी पड़ जाये तो वह दुगना किराया मांगता है कारण कि बक़ौल उसके, लौटते में सवारी
नहीं मिलती। जो आपका मोबाइल छीन कर ले भागते हैं उनके लिए भी एक दौड़ का आयोजन
(क्रीडा दिवस) पर किया जाया करेगा। पुरस्कार स्वरूप तरह-तरह के मोबाइल रखे जाया
करेंगे यथा फर्स्ट प्राइज़ लेटेस्ट आई-फोन बाकियों को अन्य ब्रांड के फोन दिये
जाएँगे और सांत्वना पुरस्कार में ईयर-पॉड दे दिये जाएँ। कार छीन कर भागना, साथ-साथ लंबी कूद, ऊंची कूद, लिफ्ट ले कर
लूटने की प्रतियोगिता भी कराई जाएँ। आए दिन किसी न किसी की सवारी गाजे-बाजे और फुल
वॉल्यूम डी.जे. के साथ जुलूस की शक्ल में निकाले जाती है इस बात को भी कल्चरल
कलेंडर में शामिल करना चाहिए।
तेज़ रफ्तार गाड़ी चलाना, आड़ी-तिरछी गाड़ी चलाना, जान हथेली पर रख
कर ओवर टेक करना भी नौयडा की कल्चर का अभिन्न अंग है। इसके साथ कॉलेज फ़ेस्ट की तरह
नॉन-स्टॉप गाली देने के लिए भी एक दिन तय होना चाहिए। खरी-खरी गाली देना नौयडा की
कल्चर है, इसका ख्याल रखा जाये। गाली हमारे समाज का दर्पण है। उसी तरह
ट्रेफिक जाम भी हमारी कल्चर है, जरा सा कुछ हो जाये और तुरंत ट्रेफिक जाम लगना
तय है। हमें अपनी इस कल्चर पर गर्व है। अभी टोल-टैक्स की तो बात हुई ही नहीं है
मगर हमारे टोल-टैक्स खूब ही कुख्यात हैं। टोल नाके पर मार-पीट भी हमारी कल्चर है यह भारत खासकर उत्तर
भारत की ‘जानता नहीं मेरा बाप कौन है’ के नेरेटिव का सब ग्रुप है।
नौयडा का संधि-विच्छेद नो+आइडिया होता है। हमें अपने नौयडा की कल्चर पर गर्व है।
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