एक खबर है कि दरोगा जी जब अस्पताल
गए तो पीछे से चोर उनके घर में घुस कर उनकी बंदूक और लाखों रुपये लेकर ये जा वो जा।
दूसरे शब्दों में उनकी दौलत और दबदबे दोनों का इलाज़ उन्होने एक झटके में कर दिया। असल
में ये दरोगा साब रिटायर्ड थे और इलाज़ को एम्स गए थे। बजाय अपने घर लौटने के वो वहीं
अपने भाई के घर रुक गए। दो-चार दिन बाद लौटे तब तक ये कांड हो चुका था।
इससे एक तो हमें चोरों की ‘साइकी’ का पता चलता है वे असली
धर्म निरपेक्ष हैं। वो ये नहीं देखते कि आप किस धर्म के हैं ? कौन से भाषा-भाषी हैं ? आप वर्किंग हैं या रिटायर्ड हैं ? इस केस में ये दरोगा महाशय रिटायर्ड थे। वो ज़रूर ‘ओवर-कॉन्फ़िडेंस’
का शिकार होंगे। हम दरोगा हैं ! चोर
हमारे नाम से थर-थर काँपते हैं। हमें देख कर मील भर दूर से ही भाग जाते हैं। छुप जाते
हैं। उन्हें पता नहीं है कि बहुत सी अन्य चीजों की तरह अब ये काम भी ऑन-लाइन हो गया
है बोले तो फेसलैस। फिर ब्रादर ! आप रिटायर हैं। अब रिटायर तो आप दरोगा हो, या कप्तान हों या फिर आई.जी. ही क्यों न हो। चोर तो अभी
वर्किंग है न, वो रिटायर नहीं हुआ है। पहले तो आपको
इतनी दूर इलाज़ कराने जाना नहीं था, जाना था तो इलाज़ के
बाद सीधे घर आना था। भाई के पास जाना था तो चाय पीकर उल्टे पाँव आ जाना चाहिए था। पर
नहीं आप तो दरोगा हैं और बाहर तो कोई सुनता-सुनाता नहीं चलो भाई के यहाँ ही खातिरदारी
का लुत्फ उठाया जाये ।
चोर धन-दौलत के साथ साथ आपकी बंदूक भी
ले गए। कैसा तो भी लगा होगा आपको। सारी उम्र भर जिस बंदूक के दिखाने भर से आपका काम
चल जाता होगा वो सहारा ही न रहा। अब आप भले दूसरी बंदूक खरीद लें पर वो बात नहीं आएगी।
गली-मोहल्ले में लोग उपहास अलग करेंगे “वो देखो वो वाले दरोगा जी जा रहे हैं जिनकी
रिवॉल्वर और रुपये चोर ले गया” चलो चिंता छूटी। जब तक ये दौलत और बंदूक रहती है आदमी
को चिंता ही रहती है वह मोहपाश में ही जकड़ा रहता है। अब आप समदर्शी हो ! प्रभु से लौ
लगा सकते हैं इसी के बारे में कबीर ने बहुत पहले लिखा था:
कबिरा खड़ा बाज़ार में लिए मुराडा
हाथ
जो घर जारै आपाना, चले हमारे साथ
दरोगा जी को इसका ग़म नहीं करना चाहिए
बल्कि इसे ऐसे लेना चाहिए जिसका था वो ले गए। आप क्या लेकर आए थे (दरोगा बनने) क्या
लेकर जाएँगे।
मेरा मुझमें कुछ नहीं जो है सो तोर
तेरा तुझको सौंपते क्या लागे मोर
ये तो भला हो आप रिटायर्ड हैं जो कहीं
अभी नौकरी में होते तो और फजीहत होती। आप अपनी बंदूक की रक्षा नहीं कर सकते अपने इलाके
(जहां भी आपकी ड्यूटी रही होती) उसकी क्या करेंगे। ये बताओ ये इतने पैसे आपके पास आए
कहाँ से ? बोले तो आय के ज्ञात सोर्स से कहीं
अधिक। उधर चोरों का अपने समूह-समाज में कितना रुतबा बढ़ गया होगा। वाह! दरोगा जी को
भी नहीं छोड़ा। यह वैसे ही है जैसे चिड़ीमारों ने शेर मार लिया हो। उनका प्रमोशन
पक्का है। एक पॉज़िटिव यह है कि आप कह सकते हैं कि जब मैं सर्विस में था तो मजाल है
शहर में किसी चोर की हिम्मत होती जो किसी के घर के बाहर पड़ी चीज़ भी कोई उठा सकता था।
ये तो अब मैं रिटायर हो गया तब से सारे इलाके में यही अराजकता चल रही है। पता नहीं
ये आजकल की पुलिस को क्या हो गया है इनका वो रौब-दाब ही नहीं रह गया। हमारे जमाने में.....
और नयी नयी कहानियाँ जोड़ते रहें।
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