खबर है कि
हाई कमांड ने तय किया है कि ‘चलो हम जातिगत जनगणना करा लेते हैं। पर खबरदार जो इस
पर राजनीति की तो ?” (अर्थात राजनीति भी हम ही करेंगे...तुम नहीं) नो
पॉलिटिक्स प्लीज़ ! हमारे देश में जहां खेलों में राजनीति है, कॉलेज में
राजनीति है। टीचर्स के सलेक्शन में राजनीति है। पोस्टिंग-ट्रांसफर में राजनीति है
और खूब ही है। गोया कि राजनीति मात्र राजनीति में ही नहीं बल्कि हर जगह है। आप
बताएं कहाँ नहीं है ? खेलों के लिए खिलाड़ी के चयन में क्या राजनीति
नहीं होती ? आप बहुत भोले हैं यदि आप समझते हैं कि पॉलिटिक्स नहीं होती।
उम्मीदवार के चयन में पॉलिटिक्स होती है। टिकट देने में पाॅलिटिक्स, काटने में
पॉलिटिक्स। रेजीडेंट वेल्फेयर सोसायटी में पॉलिटिक्स है और भरपूर है। आप कोई एक
संस्था, एक गाँव, एक नगर-पालिका बताओ जहां पॉलिटिक्स नहीं है।
क्या बाबाओं के आश्रम, क्या फिल्म लाईन, क्या फिल्मी
कलाकार-कलाकारनी, क्या बी.एम.सी. क्या क्रिकेट, क्या ओलम्पिक।
जात नकारने वालों को कहें मकान किराये पर लेने जाएँ तो निर्णयात्मक प्रश्न जात का
ही होता है। चाहे दिल्ली हो या मुंबई। दूर जाने की ज़रूरत नहीं इतवार को विवाह के
एड वाले कॉलम उठा कर देख लें। हम तो वो हैं जो विदेश में भी अपनी जात साथ ले जाते
हैं और जहां दूसरा इंडियन दिखा नहीं कि जात का कीड़ा बाहर आया नहीं।
चक्कर ये
है कि आप और किसी भी चीज़ में पॉलिटिक्स करने कहाँ देते हो। यहाँ तक कि पॉलिटिक्स
में भी पॉलिटिक्स नहीं करने देते। कोई चूँ भी करे तो आप बरबस ही कह उठते हैं
पॉलिटिक्स नहीं... पॉलिटिक्स नहीं ! हम किस पर पॉलिटिक्स करें फिर ? सच तो ये है कि
जात जनगणना से बेहतर विषय पॉलिटिक्स के लिए हो ही नहीं सकता। ये बोले तो
‘गेम-चेंजर’ है। मास्टर स्ट्रोक है। वो भी दोनों पार्टीज़ के लिए। जो सत्ता में
होगा उसके लिए भी और जो विपक्ष यानि प्रतिपक्ष में होगा उसके लिए भी। यूं कहने को
रहता है हम भारतीय पहले हैं, हम भारतीय आखिर में भी हैं। पर सच आप भी जानते
हो। हम भारतीय होने से पहले ऊंची जात, नीची जात हैं, दलित हैं, स्वर्ण हैं।
महादलित हैं। ब्राह्मण हैं, बनिया हैं। और इतने पर भी बस नहीं। हम
कान्यकुब्ज हैं हम सरयुपानी हैं। ओ.बी.सी. हैं तो मलाई वाले
हैं अथवा बेमलाई वाले हैं। यही सब होता रहे तभी न हम मलाईदार पोस्टों पर क़ाबिज़
रहेंगे।
अब देखते
हैं कि ये जो पॉलिटिक्स है ये जनगणना मे नहीं होगी तो भला कहाँ होगी। पहले देखते
है कि जनगणना पर किस किस्म की पॉलिटिक्स हो सकती है। ‘क’ जाति कहेगी हम संख्या मे
ज्यादा है हमें हमारे संख्या बल के हिसाब से हिस्सेदारी चाहिए। ‘ख’ जाति कहेगी ये
‘ग’ जाति को इतनी सीट क्यों कर ? जबकि उनकी संख्या तो हमसे कम है। इसके अलावा और
तो क्या ही मांग लेंगे। बाई दी वे, आप अब भी तो केंडीडेट चूज
करने, टिकट देने मे जाति देखते हैं। बंदे की जाति तो देखते ही
देखते हैं चुनाव क्षेत्र विशेष में रहने वाले बाशिंदों की भी जात देखते हैं। और
उसी तरह टार्गेट ग्रुप को एड्रेस किया जाता है। कुछ मार-काट मचाई जाती है। कुछ
ऊटपटांग योजनाओं की घोषणा की जाती हैं, उनके भूले-बिसरे आइकॉन को
सम्मान दिया जाता है, छह महीने में ज़मींदोज़ हो जाने वाले पुतले लगाए
जाते हैं। सब जात का खेल है। यूं कहने को रहता है जात पर न पात पर मोहर लगेगी.....
और या फिर सबका साथ सबका विकास। भैया पहले अपना विकास दूसरे भी अपना और अपने
परिवार का विकास और अंत में भी केवल अपना और अपनों का विकास।
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