Ravi ki duniya

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Wednesday, September 11, 2024

व्यंग्य: सूबे में बाढ़, नेताजी हीरोइन के साथ बिज़ी

 

                     


 

            सूबे में बाढ़ को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। सब ओर त्राहि-माम व्याप्त है। बाढ़ के हालात होते ही ऐसे हैं। चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देता है और सबसे पहला संकट पेय जल पर ही आता है। वो कहावत है न “वाटर वाटर एव्रीवेयर नॉट ए ड्रॉप टु ड्रिंक” जब पानी को लेकर ऐसा गदर मचा हुआ हो तो हमारे देश में मंत्री जी की तरफ देखने का एक रिवाज है। वो क्या कहते हैं ? क्या करते हैं ? कैसे केंद्र सरकार से रिलीफ़ या रिलीफ़ का वायदा लेकर आते हैं ? कैसे कमसेकम पचास हज़ार करोड़ के पैकेज की घोषणा होती है। और फिर सब अपने-अपने तीये-पाँचे में बिज़ी हो जाते हैं। बाढ़ गौण हो जाती है। पानी उतर जाता है।

 

                मगर यह क्या ? यहाँ तो मंत्री जी ही नदारद मिले। न कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस, न हवाई दौरा, न कोई ट्विटर, न केंद्र को कोई चिट्ठी-पत्री।  सब एक दूसरे से पूछते फिर रहे हैं मंत्री जी कुठे आहे ? मंत्री जी बगितले काय?  पता चला मंत्री जी एक फिल्मी हीरोइन के साथ बिज़ी हैं। दरअसल उस हीरोइन को बाढ़ के पानी की रोक-थाम का बहुत तजुरबा है। कोई कैसी भी बारिश हो, बाढ़ हो ये अभिनेत्रियाँ पानी को भी पानी-पानी कर देने में सक्षम होती हैं।

 

               अब आलोचकों को तो कोई मुद्दा चाहिए होता है वो इस बात को ही ले उड़े। गोया मंत्री जी हीरोइन के साथ राज्य की गंभीर बाढ़ की स्थिति पर चर्चा और बाढ़ की रोकथाम की योजना को अंतिम रूप नहीं दे रहे थे बल्कि कोई ऐश मज़ा कर रहे थे। हमारे देश में लोगों की मानसिकता कितनी संकीर्ण है। अब हीरोइन भी आखिर भारत की सम्मानित नागरिक होती है। आयकर, जी.एस.टी. सब देती हैं अतः यह उनका अधिकार और कर्तव्य दोनों है कि वे राज्य की प्रगति में सहायक हों अपने अमूल्य विचार और सुझाव आलाकमान के समक्ष प्रस्तुत होकर रखें।

 

        लोगों को इसमें भी पॉलिटिक्स करनी है अरे भई ! कोई तो क्षेत्र हो जिसमें आप पॉलिटिक्स न करें। मैं हीरोइन के साथ अपने कॉन्फ्रेंस रूम में गहन चिंतन में लीन था। इतनी गंभीर चर्चा को आप पब्लिक में ऐसे उछाल रहे हैं कि जैसे आपने हमें कॉन्फ्रेंस-रूम में नहीं बल्कि बेड-रूम में देख लिया हो। अरे भई ! राज्य के कल्याण की बात होगी तो आप मुझे कभी पीछे नहीं पाएंगे।

                 कौन है ये लोग ? कहाँ से आते हैं ऐसे लोग ? जो एक मंत्री को सिने-अभिनेत्री के साथ देख लें तो अपने वन-ट्रेक माइंड से सिर्फ उल्टा ही सोचते हैं। ये ही हैं वो लोग जो नारी को महज़ एक वस्तु, एक चीज़ समझते हैं, उसका कमर्शियलाइजेशन करते हैं । मैं तो सिने-अभिनेत्री से वो गुर पूछ रहा था कि कैसे वो अपनी फिल्मों में गहरे पानी के झरने में उतर जाती है, गाने गाती है और हँसते-गाते वापिस निकल आती है जबकि ये हमारे सूबे के लोग हैं सब कोरस में बचाओ-बचाओ के अलावा और कुछ बोल नहीं पाते। आप इतने प्यारे-प्यारे गीत गाती हैं और गाने में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि आपको अपने वस्त्रों तक की सुधि-बुधि नहीं रहती। एक ये सूबे के लोग हैं कि बाढ़ आई नहीं और ये चिंता से भर उठते हैं कि उनके कच्चे मकान का क्या होगा ? उनकी फसल का क्या होगा ? उनके बच्चे के स्कूल का क्या होगा ? उनके मवेशियों का क्या होगा ? उनकी रोटी-पानी का क्या होगा ? कैसी मानसिकता है ये ? मैं इन्हीं बातों को लेकर चिंतित हूँ कि कैसे मेरे लोग भी इस सिने-अभिनेत्री के माफिक बारिश को, बाढ़ को एंजॉय कर सकें। और एक ये विपक्ष वाले हैं जो हम दोनों को लेकर देवा रे देवा ! कैसी-कैसी बातें करते हैं। कोई शर्मदार इंसान हो तो ऐसी बातें सुनकर शर्म से डूब कर ही मर जाये।   

 

 

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