Ravi ki duniya

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Thursday, September 26, 2024

व्यंग्य: इंडिया में पाकिस्तान

 


 

               न्यायपालिका ने इस बात का सख्त ऑबजेक्शन लिया है कि उनका कोई सदस्य यह कहे कि इंडिया का कोई भाग पाकिस्तान हो गया है या पाकिस्तान जैसा लग रहा है। सुना है जिस सदस्य ने यह कहा उन्होने माफी भी मांग ली है। भई ! सीधी-सीधी बात है क्या पाकिस्तान में भी कोई किसी इलाके को लेकर कहता होगा कि इंडिया जैसा लग रहा है अथवा ये इंडिया हो गया है। हालांकि यह बात लोग-बाग कनाडा के लिए और इंगलेंड के लिए कहते रहे हैं कि वहाँ किसी-किसी इलाके में जाओ तो लगता है पंजाब के किसी शहर में आ गए है।

 

      इतनी मशक्कत के बाद आज़ादी मिली है। पाकिस्तान अपने में खुश है। हमें अपने में खुश रहना चाहिए। हम पता नहीं क्यों अपनी खुशी को उनसे जोड़ लेते हैं, खासकर उनकी गुरबत से। मसलन हम इसी बात से खुश हो जाते हैं की वहाँ आटा इतना महंगा मिल रहा है। या फिर वह इतने विदेशी कर्ज़ के तले दबे हुए हैं। ऐसा कहने सुनने से अपने आटे का भाव हल्का हो जाता है साथ ही अपने कर्ज़-मर्ज पर ध्यान नहीं जाता।

 

                  वैसे भी भारत के कौन से शहर की यूरोप के किस शहर से तुलना करनी है अथवा भारत के कौन से शहर को यूरोप के किस शहर जैसा बनाना है यह नेता लोग डिसाइड करते हैं। इसमें न तो कार्यपालिका का और ना ही न्यायपालिका का कोई दखल है। नेता लोग ही अपनी सभा में यह डिस्क्लोजर देते हैं कि मुंबई को वेनिस बनाना है या वाराणसी को टोकियो। जिस तरह से शहर-शहर सड़कों पर जरा सी बारिश से पानी भर जाता है और बोट चलाने की नौबत आ जाती है अतः आप कह सकते हैं कि नेता जी ने तो एक शहर को वेनिस बनाने का वादा किया था यहाँ हर सूबे में न जाने कितने वेनिस हैं।

 

          यह घेटो मानसिकता ह्यूमन है। अल्पसंख्यक अपने समूह में रह कर सुरक्षित महसूस करते हैं। एक-दूसरे की मदद को तैयार रहते हैं। सबके सुख-दुख में शामिल रहते हैं। ये नामकरण भी अजीब है दिल्ली में एक बंगाली मार्किट है। मगर उसका बंगाल से कोई लेना देना नहीं है। इसी तरह चितरंजन पार्क है जहां बहुत से बंगाली भद्र लोक रहते हैं। तो क्या हम उसे मिनी बांग्लादेश कह दें ? ये सब नेता लोग का विशेषाधिकार है। ये उनको देखना है इस निर्वाचन क्षेत्र में बिहार के प्रवासी अधिक संख्या में हैं तो यहाँ से बिहार बैकग्राउंड के उम्मीदवार को उतारा जाये। यह वहाँ के लोगों को अधिक आकर्षित कर पाएगा। यहाँ से वैश्य समुदाय के लोकप्रिय व्यक्ति को टिकट देनी है तो यहाँ से किसी ब्राहमण को तो यहाँ से राजपूत को।

 

                अतः इसमें न तो न्यायपालिका को न कार्यपालिका को पड़ना चाहिए। पता नहीं दिल्ली को क्या बनाने का प्लान चल रेला है। लंदन अथवा न्यूयोर्क ? उस से कम में जमेगा नहीं। कहावत है जिसने लाहौर नहीं देखा वो जन्मया ही नहीं। हमारे यहाँ एक घरेलू काम के लिए महिला रखी गई।  वह मध्य प्रदेश के किसी सुदूर इलाके से थी उसने एक बार भोपाल देखा था। अब वो हमें खासकर पत्नीजी को दिन में चार बार भोपाल की बातें कर उलाहना दे देती थी। “आप ने भोपाल ही नहीं देखा ! आपको क्या बताना”। उसकी नज़र में मेरी थोड़ी-बहुत इज्ज़त थी क्यों कि मैंने भोपाल देखा था और दो एक जगहों के नाम लेकर अपने मार्क्स बढ़ा लिए थे।

 

            हाँ तो यह कहना कि फलां जगह पाकिस्तान है गलत है। अरे भाई कहना हो तो कहें फलां जगह न्यूयोर्क है, अथवा फलां जगह पेरिस है। टोकियो और वेनिस तो पहले ही क्लेम कर लिए गए हैं। अब विदेश के दूसरे शहर ढूँढने पड़ेंगे। जैसे कि रियो डि जिनेरो, बीजिंग, शिकागो, ग्रीनलेंड, ब्रूनाई, हमें अपना विज़न बड़ा रखना है अतः सभी शहर यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया के देखने और नामकरण के लिए अपनी लिस्ट में रखने हैं।

 

   आप भूल गए शायद ! थिंक ग्लोबल !  

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