विश्व के अन्य देशों की
तो पता नहीं किन्तु भारतीय खासकर भारतीय नेता जूते के आविष्कार से बहुत लाभान्वित
हुए हैं। ये सब जूते के बेनीफिशयरी हैं। हालांकि जूता-चप्पल एक दूसरे के पर्याय
हैं फिर भी बहुधा ये एक साथ चलें, आई मीन ! इस्तेमाल किए जाएँ तो अधिक प्रभावशाली
होते हैं। फलां सभा में जूते-चप्पल चले, जूतों में दाल बांटना, बाप का जूता बेटे
के आ जाये तो..., जूता चुराई की रसम, जिसका जूता उसका
सिर, जूतों की माला, जूत ही जूत बजाए, ‘मेरा जूता है
जापानी....’ क्यों चलाया गया? पता नहीं ! जबकि हमारे भारत में ही अच्छे और
सस्ते जूते आम मिल जाते हैं।
पिछले कुछ
सालों से भारतीय राजनैतिक क्षितिज पर जूतों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जूते
मिसाइल की तरह नेता की तरफ फेंकने का रिवाज रहा है। कई बार जूता लगता है, कई बार चूक जाता
है मगर अपने उद्देश्य में पूरा उतरता है। फुल-फुल पब्लिसिटी। ‘जूते मारो सालों
को...’ एक लोकप्रिय टैग लाइन है मगर इसमें लोकप्रियता के साथ-साथ टिकट कटने का
रिस्क रहता है।
जूतों
की माला को खराब क्यों समझा जाता है ये समझ से परे है। फूलों की माला को सम्मान का
प्रतीक माना जाता है। जबकि फूल जल्द ही मुरझा जाते हैं, फूलों से एलर्जी
होती है। कपड़ों पर फूलों के लाल-पीले निशान पड़ जाते हैं जो मुश्किल से जाते हैं।
जूते की माला प्रेफर की जानी चाहिए बस शर्त ये है कि जूते नए हों, नाप के हों और
दोनों पाँव के हों। भई नोटों की माला लोग-बाग खासकर दहेज वाले दूल्हे पहनते ही हैं
और खूब इठलाते बल खाते फोटो भी खिंचाते हैं। दुल्हन को क्यों नहीं नोटों की माला
पहनाई जाती ? आखिर उसके दिये दहेज और सगाई में मिले नोटों से ही तो
दूल्हा नोटों की माला पहनता है।
कादर
खान साब का एक डाॅयलाॅग है “हम वो हैं, जिसकी बेइज़्ज़ती कर दें तो
उसकी इज्ज़त हो जाती है” कुछ इसी तर्ज़ पर नेता कह सकता है कि उसे अमुक बड़े नेता ने
जूता मारा था या फिर उसने अमुक बड़े नेता पर जूता फेंका, वह दिन दूर नहीं
जब उभरते नेता लोग अपने सी.वी. में यह लिखने लग जाएँगे। मुझे जूता खाने का दस साल
का तजुर्बा है। या फिर मेरे जूता फेंकने का स्ट्राइक रेट 90% है। मैं जूता
खुशी-खुशी खा सकता हूँ और वक़्त ज़रूरत मार भी सकता हूँ। बाद में प्लीज़ आप देख लेना।
जूतों की माला, गधे की सवारी और काला मुंह करना, इन तीनों का एक
कॉम्बो होता है वह किस्सा फिर कभी।
भारतीय
नेताओं में जूता बहुत लोकप्रिय है। यह खाने के काम आता है, मारने के काम आता
है, फेंकने के काम आता है या फिर यूं ही बस उछालने के काम आता
है। आजकल के बदले हुए हालात को देखते हुए ही मुहावरे में समुचित संशोधन कर दिया
गया है। अभी गज़ट में नहीं आया। वह है ‘नेकी कर जूते खा’
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