Ravi ki duniya

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Thursday, November 6, 2025

व्यंग्य: जान की दुश्मन - ऑक्सिजन

 

                                             


 

यूं कहते हैं हमारे वायुमंडल में नाइट्रोजन की मात्रा 78% तक है। आप अंदाज़ लगा लें फिर ऑक्सिजन कितनी कम है। ऐसा समझिए मात्र 21% है। बाकी 1% और तमाम गैस हैं। आप समझ गए होंगे क्यों ऑक्सिजन की इतनी मारामारी है। योगा वाले अलग सुबह - सुबह उठ कर ऑक्सिजन खींचने में लगे रहते हैं। अस्पताल में मरीज़ की हालत बिगड़ी नहीं और ऑक्सिजन की चीख-पुकार मचाने लगती है। कोरोना में हम सबने ऑक्सिजन को लेकर मारधाड़ देखी भी है और उस दौर से खुद गुजरे भी हैं। पूरी दुनियाँ पेड़-पौधे लगा रही है ताकि ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ सके। मेरे भारत महान में हम विकास को लेकर चिंतित हैं अतः जंगल काट काट कर एक्स्प्रेस वे और कारखाने लगा रहे हैं खदानें खोद रहे हैं।

 

सुना है भूटान में कार्बन रेटिंग नेगेटिव में चल रही है। हमारे ए.क्यू.आई. 400-500 तक जाता है। जबकि कहते हैं इसे तीन अंक में नहीं आना चाहिये अर्थात 100 भी नहीं होना चाहिये। हम मस्त क़ौम हैं। हमें कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। जीना-मरना सब ऊपर वाले के हाथ है। वो जोश मलीहाबादी साब का शेर है ना:

 

                         क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के

                            क्या पाएगा तौहीन-ए-जवानी कर के

                           तू आतिश-ए-दोज़ख़ से डराता है उन्हें

                          जो आग को पी जाते हैं पानी कर के

 

अतः ये छोटे-मोटे ए.क्यू.आई. हमें डरा नहीं सकते।  विकास का जो महत्ती काम हम कर रहे हैं, उससे डिगा नहीं सकता। हाँ अगर तुम एक पेड़ काटोगे अपने आँगन का जिससे आपको हानि पहुँच रही हो तो हम आपको नोटिस भेज देंगे और आपको चक्कर लगवा लगवा कर दो चीज़ घिसवा देंगे एक आपकी नाक एक आपके जूते। हाँ अगर आप एक हज़ार पेड़ काटेंगे तो हम कुछ नहीं कहेंगे, बशर्ते आपने यह काम देश हित में विकास के लिए किया हो। आपने ऐसे केस देखे होंगे जहां बिल्डर जंगल के जंगल काट कर आपके लिए कॉलोनी बनाता है और फिर आपको फ्लैट बेचते वक़्त बताता है कि कैसे उन्होने आर्टिफ़िशियल लेक बनाई है। घास उगा दी है। आपके वास्ते ग्रीनरी बनाई है। कहीं नैचुरल कहीं आर्टिफ़िशियल प्लास्टिक की घास से। क्या आपने किसी भी पॉलिटिकल पार्टी के चुनाव-घोषणा पत्र में ऑक्सिजन की, एनवायर्नमेंट की बात देखी-पढ़ी-सुनी है ? मुझे ज्यादा ताज्जुब नहीं हुआ जब मैंने देखा आप बस अपना कार नंबर बताइये और बिना कार ले जाये आपको प्लूशन अंडर कंट्रोल का प्रमाणपत्र मिल जाता है। पर जहां वोट आपके जाये बिना गिर जाता है तो यह आदमी के गिरने के ही प्रमाण हैं। जब आदमी गिर ही गया तो फिर काम कोई हो, क्षेत्र कोई भी हो, धरातल कोई भी हो क्या फर्क पड़ता है।

 

हाँ तो बात ऑक्सिजन की हो रही थी। एक अस्पताल में जब एक मरीज की हालत नाज़ुक हुई तो हस्बे मामूल उस को ऑक्सिजन दी जाने लगी। जिसे आजकल आम भाषा में कहा जाता है कि फलां ऑक्सिजन पर है। यह वेंटिलेटर से अलग है। वेंटिलेटर-पुराण फिर कभी उसकी महिमा में तो एक पूरा लेख लगेगा।

 

                                  वेंटिलेटर अनंत

                                  वेंटिलेटर कथा अनंता

 

तो ऑक्सिजन तो इस उम्मीद से लगाई गयी थी कि अब मरीज़ की हालत में सुधार नहीं हुआ तो कमसकम स्थिर तो बनी रहेगी। मगर यह क्या ऑक्सिजन पाइप में ही भयानक विस्फोट हो गया। वो क्या कहते हैं सिलिन्डर ही फट गया। अभी तक कुकिंग गैस के सिलिन्डर फटते सुने-पढ़े थे अब ऑक्सिजन के सिलिन्डर भी फटने लगे। कलयुग शायद इसी को कहते हैं। तो जी ऑक्सिजन का सिलिन्डर फटते ही विस्फोट हुआ और विस्फोट के तुरंत बाद भयानक आग लग गयी। बेचारे मरीज़ को ऑक्सिजन दी थी कि उसे जीवन मिले, यहाँ देखते-देखते मरीज़ के चिथड़े उड़ गए। दर्दनाक मृत्यु हो गयी। जांच-वांच तो होती रहेगी। होगी भी। पर कुछ तुरंत ऐसा करें कि ऑक्सिजन जो जीवन के लिए दी जा रही है वही मृत्यु का कारण न बन जाये। अभी तक वेंटिलेटर का सुन कर ही मरीज़ के परिजन उम्मीद छोड़ देते हैं। अब ऑक्सिजन का नाम सुनते ही वो कह देंगे “जी रहने दें, हम मरीज़ को घर ले जा रहे हैं!”

 

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