एक सूबे के नेता जी ने यह सरकारी घोषणा की है
कि माननीय विधायकों, सांसदों के आने-जाने पर
अधिकारी खड़े होकर अभिवादन करेंगे। मैं तब से यह सोच-सोच परेशान हो रहा हूँ कि ऐसा
आदेश देने की नौबत क्यूँ आई? हो न हो या तो अधिकारी आने पर
खड़े नहीं होते अथवा अधिकारी जाने पर खड़े नहीं होते क्या पता अधिकारी, न आने पर खड़े होते हों और न जाने पर। इन तीन के अलावा एक सिनीऑरियो और
बनता है कि माननीय विधायकों/सांसदों के आने पर यह अपेक्षा की जाती हो कि अधिकारी
खड़े हों और खड़े ही रहें जब तक नेता जी उनके चैम्बर में उन्हें प्रवचन दे रहे हैं।
यह तो ग़नीमत है नेता जी यहीं रुक गए। हो सकता
है अगला आदेश यह आए कि जब तक विधायक/सांसद अधिकारी के कक्ष में हैं तब तक अधिकारी
ज़मीन पर आलथी-पालथी मार कर सुख-आसन में अथवा उकड़ूँ बैठ कर भक्ति-भाव से
विधायक/सांसद महोदय को सुनेंगे और हुंकारा लगाएंगे। फिर एक बार कभी यह आदेश भी आ
सकता है कि अधिकारी दंडवत लेट कर बिना विधायक/सांसद की ओर ताके/आँखें उठाए बात
सुनेंगे। या नव-वधू की तरह घूँघट की आड़ ले लेंगे। गोया विधायक न हों कोई जेठ
जी/ससुर जी आए हों।
देखिये अधिकारी महोदय आप परमानेन्ट हैं। आप
विधायक/सांसद महोदय की तरह टेम्परेरी नहीं। वे आज हैं कल नहीं। उनकी रिपोर्ट रोज
के रोज भरी जाती है। लाखों करोड़ों खर्चने के बाद भी अगली बार का कोई भरोसा नहीं
होता। ‘वोटर-लिस्ट महाठगिनी हम जानि, त्रिगुण
फांस लिए बोल मधुर बानी’ आप तो साठ बरस तक जलवाफ़रोश रहेंगे। जबकि इन नेताओं का
केरियर ही बहुधा साठ बरस की उम्र के बाद शुरू होता है। इन नेताओं की तो चार दिन की चाँदनी होती है।
उसके बाद न कोई जय जयकार होनी है न कोई हार माला, न कोई
गज़माला, न कोई बैनर, न कोई तोरण द्वार।
जबकि अधिकारी लोग को तो हर नयी पोस्टिंग पर फूल-मालाओं से लाद दिया जाता है। 'फूल ही
फूल हैं मेरे जीवन में'।
हो सकता है संशोधन का कोई जी.ओ. आए, जब तक नहीं आता है तब तक आप यह मान कर चलें और यही सेफ भी है कि जब तक
विधायक/सांसद आपके कक्ष में हैं तब तक आप दोनों टांगों पर खड़े ही रहें। यह शुकर
मनाएँ कि सरकारी आदेश यह नहीं आया कि आप बगुले की तरह एक टांग पर खड़े रहेंगे। अब
यह विधायक/सांसद महोदय की स्वीट-विल है कि क्या पता आपकी इस उठ्ठक-बैठक से इंप्रेस
हो कर वह आपको भी आप ही के चैंबर में बैठने की अनुमति दे दे। अन्यथा आप खड़े ही रहे
हैं। आपने फिल्म पूरब-पश्चिम का वो गीत नहीं सुना ‘मैं खड़ा हूँ खड़ा ही रहूँगा...’
वैकल्पिक तौर पर आप डॉक्टर का सार्टिफिकेट कबाड़ने का प्रयास भी कर सकते हैं कि आप
खड़े होने में असमर्थ हैं।आंशिक-दिव्यांगता के शिकार हैं। क्या पता चल जाये तो चल
ही जाये। और जो नहीं चला तो अगला आदेश दूर नहीं जब आपको आरती का थाल तैयार रखने को
कहा जा सकता है कि उनके ‘प्रकट’ होते ही आपको आरती उतारनी है। जयकारा लगाना है।
सादर प्रणाम करना है। चरण स्पर्श करने को प्राथमिकता दी जाएगी। आखिर वो आपके
बुजुर्ग हैं। भारतीय संस्कृति में चरण स्पर्श की परम्परा है उसके बदले में आप सोचो
कितने आशीर्वाद एकत्रित कर सकेंगे। आप चाहें तो इन आशीर्वादों का रिकॉर्ड रखने को
अपने कक्ष में सी.सी. टी.वी. भी फिट करा सकते हैं। मत भूलो कि वो आपको कान पकड़ कर
दीवार की तरफ मुंह कर के खड़ा रहने के आदेश भी पारित करा सकते हैं। बच्चू वे चाहें तो आपको मुर्गा भी बनवा सकते
हैं। भले आप गुहार लगाते फिरें कि आप शुद्ध शाकाहारी हैं।
सर! मेरा सादर प्रणाम स्वीकार करें। यकीन जानें मैं करबद्ध खड़ा हूँ।
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