Ravi ki duniya

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Monday, November 24, 2025

व्यंग्य: हे मयूर! तुम आओगे ना?


     

पत्रकारों का एक फेवरिट विषय है खासकर टी.वी. जर्नलिस्ट्स का। वह है कि हमारे फलां नेता कब हटाये जा रहे हैं अथवा त्यागपत्र दे रहे हैं। क्या उनकी पार्टी उनको हटाएगी? यही सवाल घुमा-फिरा कर चैनल-चैनल, यू-ट्यूब में सवेरे से पूछे जाते हैं, इसकी मीमांसा होती है। त्यागपत्र देंगे तो क्यूं देंगे ? त्यागपत्र नहीं देंगे तो क्यूँ नहीं देंगे? हटाये जाएँगे तो क्यूँ हटाये जाएँगे? नहीं हटाये जाएँगे, तो क्यूँ नहीं हटाये जाएँगे आदि आदि। ऐसे में ज्योतिष भी बहती गंगा में नहाने चले आते हैं। वो आपको बताते हैं कि कैसे उन्होने लिंकन की अथवा केनेडी की हत्या की भविष्यवाणी करी थी अथवा कैसे उन्होने फलां सरकार गिर जाएगी बताया था। फिर वो भारत की कुंडली से शुरू करके चालू हो जाते हैं। लो जी हो गया दो-चार घंटे का प्रोग्राम रैडी। 


हमारे बचपन में पिंजरे में से तोता निकलता था। यह तोते वाले ज्योतिष रेलवे स्टेशन और हनुमान मंदिर पर (मंगलवार को) बैठा करते थे। लेकिन वो पुरानी बातें हैं अब नवीनतम है मोर। दिल्ली जैसे शहर में जहां ए.क्यू.आई. 750-800 अंकों के बीच झूलता है। ऐसे प्रदूषण भरे शहर में भला मोर क्यों कर दिल्ली आने लगे। किन्तु-परंतु ऐसा नहीं है कि मोर सदैव ऐसे भय-आक्रांत नहीं थे और ये केकी पक्षी कभी दिल्ली की बस्ती-बस्ती गाँव-गाँव टहला करते थे। त्रिलोकपुरी के पास जब डी.डी.ए. ने नयी बस्ती बनाई तो उसका नाम भी त्रिलोकपुरी रख दिया। अब मध्यम वर्ग को यह कहाँ मंजूर था। उनकी सेंसिबिलिटीज़ इस तह नीचे आने को तैयार नहीं थी। कारण कि त्रिलोकपुरी एक रिसैटलमेंट कॉलोनी थी हालांकि यह बस्ती भी डी.डी.ए. ने ही बसाई थी। तब अस्सी के दशक के शुरू में वहाँ यह सारंग पक्षी पार्क में टहलते हुए दिख जाया करते थे। अतः: रेजीडेंट वेल्फेयर कमेटी ने डी.डी.ए. से अनुरोध किया कि क्यों न इस बस्ती का नाम मयूर विहार रख दिया जाये। बस तभी से डी.डी.ए. ने वहीं आसपास फेज 2, फेज 3, एक्सटेंशन, मयूर कुंज और तमाम सोसायटी बसा दीं। यद्यपि न्यू मोती बाग और लोक कल्याण जैसे स्थानों अर्थात लुटयन्स ज़ोन में अपनी हरियाली के कारण यह नीलकंठी पक्षी निर्भय होकर विचरण करते हैं। यहाँ तक कि उनको लोक कल्याण मार्ग पर तो यशस्वी प्रधानमंत्री द्वारा स्वयं दाना-पानी खिलाया जाता है। अब यहीं देख लो क्या कभी कलापी पक्षी ने यह सोचा था। हो सकता है अब से पहले के प्रधानमंत्रियों ने भी उन्हें दाना-पानी खिलाया हो अथवा प्यार-दुलार किया हो किन्तु हमने फोटो तो शिखी पक्षी के साथ अपने वर्तमान करुणानिधान विश्वगुरु के ही देखे हैं। मुझे एक बार यह नर्तकप्रिय पक्षी मिल गया। मैंने पूछ ही लिया “ हे मेहप्रिय ! आजकल तुम दृष्टिगोचर नहीं होते ?” उसने मेरे तरफ ध्यान ही नहीं दिया। मैंने फिर पूछा “ हे शिखावल ! तुम आजकल कम दिखाई देते हो? तब वह बिना मेरी तरफ देखे बोला "लाइफ बहुत बिज़ी चल रही है मैं आदरणीय प्रधानमंत्री के आवास पर ही रहता हूँ। मेरी सेवा-पानी के लिए अटेंडेंट आदि हैं फिर क्या ज़रूरत है मुझे बाहर निकलने की?” मैंने फिर पूछ ही लिया अगर वर्तमान प्रधानमंत्री के पास तुम इतने प्रसन्न हो तो हो न हो अब से कई दशकों बाद जब वे प्रधानमंत्री के पद पर नहीं रहेंगे तब तो तुम उनके साथ ही जाओगे। आखिर ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं जो इतना स्नेह देते हैं,अपने साथ फोटो खिंचवाते हैं। "इतनी इज्ज़त मुझे कहाँ मिलेगी? कौन देगा? अतः मैं उनके बंगले पर ही रहता हूँ” मुझे उत्सुकता हुई मैंने फिर पूछ ही लिया “ हे  सितापांग!  तब तो तुम ज़रूर उनके साथ ही जाओगे। न वो तुम्हें छोड़ेंगे और तुम्हें क्या पड़ी है जो इतने आराम की ज़िंदगी छोड़ो?” इस पर वह बोला " “आपने ठीक कहा मैं ध्वजी  हूँ मुझे यह इज्ज़त और स्नेह मिलती रहे और ये लक्जरी की मुझे अब आदत सी हो गयी है। अतः मैंने यह तय पाया है कि मैं अगले प्रधानमंत्री के साथ लोक कल्याण मार्ग पर ही रहूँगा।


                 कौन जाए 'ज़ौक़' पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर

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