Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Thursday, January 14, 2010

पंखुरियां गुलाब की

ये ज़िन्दगी का सफ़र तय ना हो पाता
अगर तेरे गेसुओं का रंगीं साया ना होता.
ग़म के शोले कब के खाक कर गये होते
अगर तेरी शबनमी मुहब्बत का झोंका आया ना होता.
ये जवानी का कारवां राह में ही भटक जाता
अगर तेरी गली को मुड़ा ना होता.
कौन मुझे पहचानता गर
मेरे साथ तेरा नाम जुड़ा ना होता.
........
अब भी कभी-कभी 
नितांत जीवन की सूनी राह पर 
मैं चलते-चलते  यूँ ही अक्सर
रुक जाया करता हूँ
क्यूँ  की मुझे लगता है
अतीत पुकार रहा है
भविष्य उदासीन है
और वर्तमान धिक्कार रहा है.
..........
क्या कभी महसूस किया है दर्द
तुम्हारे दिल की सतह ने.
क्या  कभी तुम्हें सताया है
किसी राही की विरह ने.
यदि नहीं तो क्या दर्द समझ पाओगे
या सुन के मेरी कहानी
तुम भी औरों की तरह
बस हँस जाओगे.
........
वासना थी तीव्रतम जब
ले लिया था संन्यास मैंने.
प्यार का समय था तुमसे जब
खो  दिया था विश्वास मैंने.
धरती का आधार तुम दे ना सके 
ठुकरा दिया बुलंदियों का आकाश मैंने 
तृप्त कर ना सके तुम मेरी क्षधा  
बुझा ली अपना ही खून पी के प्यास मैंने.
वासना थी तीव्रतम ...
नहीं था दिल का लगाना कोई दुष्कर कार्य
क्यों फिर दूर रहना ही रहा हमारे बीच अनिवार्य
तुम रहे अन्यत्र व्यस्त 
मैं भी हो गया अकेला रहने का अभ्यस्त 
और गंवा दिया व्यर्थ जवानी का अवकाश मैंने.
वासना थी तीव्रतम जब
ले लिया था संन्यास मैंने .
 

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