लाख बुराई सही पर आदमी अच्छा था
यह एहसास
छोड़ जाऊँगा
मशहूर हैं तेरी दुनिया में लोग
दिमागो दौलत के बल पे
मैं तो बस अपने ज़ज्बात
छोड़ जाऊँगा
बरसों तक भुला न सकोगे
दोस्त खुशबू कुछ ऐसी आस-पास
छोड़ जाऊंगा
ख़ुदारा मुझको यूँ न सताओ
बार-बार दूर जाकर
क्या पता कब तुमको अश्कबार
छोड़ जाऊंगा
.............
बस तुम मेरा साथ न छोड़ना
पीछे मौसम की तरह बदल गए हैं लोग
ये दीवानों की महफ़िल है जरा सब्र कीजे
पीछे आपका नाम सुनकर ही मचल गए हैं लोग
........
तेरी याद, तेरा ख्याल, तेरी उल्फत, तेरा ग़म लिए
इस दुनियां में रहे
गो की बेशुमार दौलत और
लुटेरों की बस्ती में रहे
माल, असबाब, इज्ज़त,शोहरत सब आसां थी मगर
हम तुमसे मिलने की खातिर
तमाम उम्र सफ़र में रहे
.....
इक शख्श अक्सर मेरे ख्वाब में आये है
में तो अनजान हूँ वो जन्मों की पहचान बताये है
घबराया सहमा ढूंढता फिरता है न जाने किसे दर-बदर
बोलता कुछ नहीं बस दिल के ज़ख्म दिखाए है
ये माहौल ये बंदिशें ये सावन ये बारिशें
तुमसे भी कुछ कहती हैं
या बस मुझे ही तुम्हारी याद सताए है
लोग रिश्ते बदल रहे हैं लिबासों की तरह
तू न जाने किस दौर का है
एक दिल के टूटने का ग़म दिल से लगाये है
दोस्त सब्र कर के देख, सब्र से दुनियां है
यूँ भी क्या कभी माँगने से मौत आये है
......
दुश्मन है गर तू तो
सीने पर घाव क्यों नहीं करता
और अगर मेरा है तो
अपनों सा बर्ताव क्यों नहीं करता
सदियों से जल रहा है आदमी
दोजख की आग में
ऐ खुदा रहमतों की
बरसात क्यों नहीं करता
ईमान मस्ती वफ़ा दोस्ती
यूँ सब पे लुटाने की चीज़ नहीं
आखिर तू अपने में बदलाव
क्यों नहीं करता
हम शमा बनके जले
सारी उम्र जिनके वास्ते
उनकी बर्फ सी खामोशी न सही जाएगी
ऐ खुदा मेरे सीने की जलन को अलाव क्यों नहीं करता
हम तूफ़ान के पाले हुए हैं
नाखुदा लहरों का खौफ कैसा
आजमाना है तो हर लहर को
सैलाब क्यों नहीं करता
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