श्रीयुत नेता जी,
कहावत है कि झूठ तीन प्रकार के होते हैं। सीधा सादा झूठ,सफेद झूठ और इन सबसे बड़ा आंकड़ेबाजी (स्टैटिस्टिक्स) वाला झूठ. नेता जी आपने आंकड़े बताये है कि भारत में प्रत्येक साल एक लाख लोग आत्महत्याएं करते हैं. उसकी 15% आत्महत्याएं राज्य में होती हैं। आपने यह भी खुलासा किया है कि अकेले मुम्बई में मात्र 4000 आत्महत्याएं होती हैं। आपका मानना है कि ये कोई ज्यादा तो नहीं। फिर आपके विश्लेषकों ने ये आंकड़े भी जुटाएं हैं कि जितनी किसानों ने आत्महत्याएं की हैं उसका मात्र 40% ही कृषि ऋण के चलते है। बाकी ?....बाकी ? उनसे आपको क्या?
चलिए ! अब इसी बात को लीजिए कि अगर आप सही भी कह रहे हैं कि केवल 40% मौतें ही कृषि ऋण के चलते है जो कि बकौल आपके कोई ज्यादा भी नहीं तो ये 60% क्यों मरते हैं। क्या कारण है। पता नहीं आपके विश्लेषकों ने इस पर ध्यान दिया या नहीं। मैंने इस पर दिमाग दौड़ाया, अनुसंधान किया, खोपड़ी चलाई....। आप चाहें तो मेरी ये आकंड़ेबाजी अगली प्रेस कान्फरेंस में अपनी बता कर पत्रकारों को परोस दें।
भारत एक प्रेममय देश है। प्रेम करना हमारी राष्ट्रीय हॉबी है। यहां प्रेम करना सबका जन्मसिद्घ अधिकार है। भले पंचायत इसकी इज़ाज़त दे या ना दे. हमारे यहां लैला मजनूं, हीर-रांझा, सोहनी महिवाल, की एक ऐतिहासिक प्रेम-परम्परा है. सो ये किसान किसानी छोड़ कर प्रेममें पड़ जाते हैं. इससे क्या होता है कि खेती नेगलैक्ट होते होते चौपट हो जाती है। अतः मेरे ख्याल से 25% आत्महत्याएं तो प्रेम से प्रेम के मत्थे मढ़ी जा सकती है। इसमें नेताजी का, ऋण का, सरकार का, बैंक का, खेत खलिहान किसी का भी क्या लेना देना। दिल तो पागल है.....ख्वाहिश....जिस्म.....मर्डर.....कातिल कौन ? जाने भी दो यारो........।
बाकी की 25% आत्महत्याओं का आप दोषारोपण कर दीजिए शिक्षा पर, परीक्षा प्रणाली पर, मानसिक दबाव...डिप्रेशन पर। आखिर कोचिंग वोचिंग लेते नहीं...फेल होते हैं। कई बार तो फेल होने के डर मात्र से आत्महत्या कर लेते हैं। सरकार ( आपकी नहीं) केन्द्र सरकार, ये परीक्षा सिस्टम, ये पासफेल का सिस्टम ही समाप्त करे। गर ऐसा हो गया....तो सारा श्रेय आपका।
महाराष्ट्र में मुम्बई है। मुम्बई मायानगरी है। रोजाना दूरदराज बाहर गाँव से लोग हीरो बनने आते हैं। वो समझते हैं सारे हीरो पहले उनकी ही तरह गाँव में खेती करते हैं और शहर में आते ही वो हीरो बन जाते हैं। धोती कुर्ते की जगह सफारी सूट, हल बैल की जगह होंडा सिटी और अगले नुक्कड़ पर प्रियंका चोपड़ा, सुष्मिता सेन, या ऐश्वर्या राय उन पर मर मिटने को तैयार खड़ी हैं। ऐसा क्यों कि होता नहीं।कोई हीरो-हीरोइन उन्हें मिलना तो दूर दिखती भी नहीं. स्टूडियो में गोरखा घुसने नहीं देता. अत: कोई 25% हीरो हीरालाल इस गम में आत्महत्या कर लेते हैं कि वे हीरो नहीं बन पाए, न अपनी मनपसन्द हीरोइन के साथ डुएट गा पाये.
25% आत्महत्याएं शहर के बढ़ते प्रदूषण, ट्रैफिक, गड़बड़ लोकल टाइमिंग के माथे पर फोड़ दीजिए। प्रदूषण से टैन्शन होती है। टैन्शन से डिप्रेशन होता है। डिप्रेशन में आदमी कुछ भी कर सकता है। उसका क्या भरोसा ! भला इसमें कृषि ऋण बीच में कहां से आ गया। ऐसे ही बेतरतीब ट्रैफिक, बिना भरोसे की लोकल से अलग तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं इससे ईव टीजिंग, लूटमार, बलात्कार, विवाहेतर संबंध बढ़ रहे हैं। कैसे ? ये पूछने की अव्वल तो कोई हिमाकत करेगा नहीं, करे तो उसे घूर के कहिए....इसके लिए दूसरी प्रेस कान्फ्रेंस रखी जा सकती है। फिर मुझे ताबड़तोड़ बताना तब तक मैं कुछ और अच्छा सा सोच के रखता हूँ।
25% आत्महत्याओं को आप मानिए मगर बताएं कि ये लोग ‘किसान' हैं ही नहीं। किसान की परिभाषा हाई फाई कर लीजिए। जैसे जो विदेशी जीन्स पहन कर, विदेशी ट्रेक्टर चलाए। जिसकी जमीन की होल्डिंग सौ बीघा या उससे अधिक हो वो ही किसान हैं बाकी सब मजदूर....बंधुआ मजदूर हैं। उसके लिए आप पहले से ही करोड़ों रुपये का अनुदान एन.जी.ओ. को दे रहे हैं। बहुत हाय तौबा मचे तो एन.जी.ओ. के ऊपर एक जांच कमीशन बिठाने का वादा कर दीजिए। और ज्यादा सरगर्मी हो....बात आपकी ‘खुर्सी' तक आन पहुँचे तो जाँच कमीशन घोषित भी कर दीजिए। उसकी रपट बनाने के लिए ‘सेवक’ को याद कीजिएगा।
आपका सेवक
पुनश्च : परसन्टेज़ज कुछ इधर-उधर करनी हो तो कर लें,कोई हरकत नहीं। बेहतर होगा 25% को 24.87% कर लें। असली लगेगी और असर पड़ेगा।
कहावत है कि झूठ तीन प्रकार के होते हैं। सीधा सादा झूठ,सफेद झूठ और इन सबसे बड़ा आंकड़ेबाजी (स्टैटिस्टिक्स) वाला झूठ. नेता जी आपने आंकड़े बताये है कि भारत में प्रत्येक साल एक लाख लोग आत्महत्याएं करते हैं. उसकी 15% आत्महत्याएं राज्य में होती हैं। आपने यह भी खुलासा किया है कि अकेले मुम्बई में मात्र 4000 आत्महत्याएं होती हैं। आपका मानना है कि ये कोई ज्यादा तो नहीं। फिर आपके विश्लेषकों ने ये आंकड़े भी जुटाएं हैं कि जितनी किसानों ने आत्महत्याएं की हैं उसका मात्र 40% ही कृषि ऋण के चलते है। बाकी ?....बाकी ? उनसे आपको क्या?
चलिए ! अब इसी बात को लीजिए कि अगर आप सही भी कह रहे हैं कि केवल 40% मौतें ही कृषि ऋण के चलते है जो कि बकौल आपके कोई ज्यादा भी नहीं तो ये 60% क्यों मरते हैं। क्या कारण है। पता नहीं आपके विश्लेषकों ने इस पर ध्यान दिया या नहीं। मैंने इस पर दिमाग दौड़ाया, अनुसंधान किया, खोपड़ी चलाई....। आप चाहें तो मेरी ये आकंड़ेबाजी अगली प्रेस कान्फरेंस में अपनी बता कर पत्रकारों को परोस दें।
भारत एक प्रेममय देश है। प्रेम करना हमारी राष्ट्रीय हॉबी है। यहां प्रेम करना सबका जन्मसिद्घ अधिकार है। भले पंचायत इसकी इज़ाज़त दे या ना दे. हमारे यहां लैला मजनूं, हीर-रांझा, सोहनी महिवाल, की एक ऐतिहासिक प्रेम-परम्परा है. सो ये किसान किसानी छोड़ कर प्रेममें पड़ जाते हैं. इससे क्या होता है कि खेती नेगलैक्ट होते होते चौपट हो जाती है। अतः मेरे ख्याल से 25% आत्महत्याएं तो प्रेम से प्रेम के मत्थे मढ़ी जा सकती है। इसमें नेताजी का, ऋण का, सरकार का, बैंक का, खेत खलिहान किसी का भी क्या लेना देना। दिल तो पागल है.....ख्वाहिश....जिस्म.....मर्डर.....कातिल कौन ? जाने भी दो यारो........।
बाकी की 25% आत्महत्याओं का आप दोषारोपण कर दीजिए शिक्षा पर, परीक्षा प्रणाली पर, मानसिक दबाव...डिप्रेशन पर। आखिर कोचिंग वोचिंग लेते नहीं...फेल होते हैं। कई बार तो फेल होने के डर मात्र से आत्महत्या कर लेते हैं। सरकार ( आपकी नहीं) केन्द्र सरकार, ये परीक्षा सिस्टम, ये पासफेल का सिस्टम ही समाप्त करे। गर ऐसा हो गया....तो सारा श्रेय आपका।
महाराष्ट्र में मुम्बई है। मुम्बई मायानगरी है। रोजाना दूरदराज बाहर गाँव से लोग हीरो बनने आते हैं। वो समझते हैं सारे हीरो पहले उनकी ही तरह गाँव में खेती करते हैं और शहर में आते ही वो हीरो बन जाते हैं। धोती कुर्ते की जगह सफारी सूट, हल बैल की जगह होंडा सिटी और अगले नुक्कड़ पर प्रियंका चोपड़ा, सुष्मिता सेन, या ऐश्वर्या राय उन पर मर मिटने को तैयार खड़ी हैं। ऐसा क्यों कि होता नहीं।कोई हीरो-हीरोइन उन्हें मिलना तो दूर दिखती भी नहीं. स्टूडियो में गोरखा घुसने नहीं देता. अत: कोई 25% हीरो हीरालाल इस गम में आत्महत्या कर लेते हैं कि वे हीरो नहीं बन पाए, न अपनी मनपसन्द हीरोइन के साथ डुएट गा पाये.
25% आत्महत्याएं शहर के बढ़ते प्रदूषण, ट्रैफिक, गड़बड़ लोकल टाइमिंग के माथे पर फोड़ दीजिए। प्रदूषण से टैन्शन होती है। टैन्शन से डिप्रेशन होता है। डिप्रेशन में आदमी कुछ भी कर सकता है। उसका क्या भरोसा ! भला इसमें कृषि ऋण बीच में कहां से आ गया। ऐसे ही बेतरतीब ट्रैफिक, बिना भरोसे की लोकल से अलग तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं इससे ईव टीजिंग, लूटमार, बलात्कार, विवाहेतर संबंध बढ़ रहे हैं। कैसे ? ये पूछने की अव्वल तो कोई हिमाकत करेगा नहीं, करे तो उसे घूर के कहिए....इसके लिए दूसरी प्रेस कान्फ्रेंस रखी जा सकती है। फिर मुझे ताबड़तोड़ बताना तब तक मैं कुछ और अच्छा सा सोच के रखता हूँ।
25% आत्महत्याओं को आप मानिए मगर बताएं कि ये लोग ‘किसान' हैं ही नहीं। किसान की परिभाषा हाई फाई कर लीजिए। जैसे जो विदेशी जीन्स पहन कर, विदेशी ट्रेक्टर चलाए। जिसकी जमीन की होल्डिंग सौ बीघा या उससे अधिक हो वो ही किसान हैं बाकी सब मजदूर....बंधुआ मजदूर हैं। उसके लिए आप पहले से ही करोड़ों रुपये का अनुदान एन.जी.ओ. को दे रहे हैं। बहुत हाय तौबा मचे तो एन.जी.ओ. के ऊपर एक जांच कमीशन बिठाने का वादा कर दीजिए। और ज्यादा सरगर्मी हो....बात आपकी ‘खुर्सी' तक आन पहुँचे तो जाँच कमीशन घोषित भी कर दीजिए। उसकी रपट बनाने के लिए ‘सेवक’ को याद कीजिएगा।
आपका सेवक
पुनश्च : परसन्टेज़ज कुछ इधर-उधर करनी हो तो कर लें,कोई हरकत नहीं। बेहतर होगा 25% को 24.87% कर लें। असली लगेगी और असर पड़ेगा।
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