चोरी, डकेती, अत्याचार,बलात्कार
इसने सब अपनी आँखों से देखा है
अपने कानों से सुनी है चीख-पुकार
किन्तु फिर भी अंधे-बहरे के अभिनय में
हर बार ये समाज ले जाता है प्रथम पुरस्कार .
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जिस अदब-ओ-तहज़ीब को
ढूढती है दुनिया दीवानों की तरह
में खुश हूँ अच्छा ही हुआ,मुझसे खो गयी
में रोता था जब दुनियां सारी
मनाती थी खुशियाँ
आज अचानक मुझे हँसता देख
ये दुनियां रो गयी
में तैयार बैठा रहा काटने को
खुशियों की फसल
तन्हाई चुपके से आंसुओं के बीज बो गयी
ओनी इस आँख का इलाज़ करूँ कोई
जब तलाक तुम ना आये खुली रही
तुम आये, सो गयो
तुम से बहुतों की शुरू हुई
मगर मेरी प्रेम कहानी तो
तुम पर ख़त्म हो गयी .
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ज़िन्दगी केवल एक आक्रोश
बन कर तप रही है
हर बार बुझ कर भी लगता है
कही कुछ प्यास पनप रही है.
ढूंढ डाले हैं मैंने तमाम शब्दकोष
मगर तुमसे वार्तालाप के शब्द नहीं मिले
शायद ये मेरे अथवा तुम्हारे
शब्दों का हो दोष.
तुम इतने दर्द को दामन में समेटे
कैसे प्यार बांटोगे
दर्द का अर्थ प्यार नहीं हो सकता
तुम मुस्कान में छिपी पीड़ा मात्र हो
लोग तुम्हें प्रिय भले समझें
मेरे तो तुम केवल दया के पात्र हो
में जानता हूँ तुम कहोगे
तुम्हें मेरी दया की आवय्शकता नहीं
आज शायद तुम यह
कह सकने की स्थिति में हो
मगर क्या तुम भूल गये
अभी कल ही की तो बात है
तुम भूलना ही चाहो तो बात और है
वर्ना मुझे तो एक एक शब्द याद है
याद है तुम्हरी सूनी आँखों में
याचना का भाव
याद है तुम्हारी हर मुस्कान में
तैरता और बढता हुआ अभाव
दोस्त ! फर्क हमारी तुम्हारी याददाश्त में है
तुम शाम को जो करते हो
सुबह भूल जाते हो
और मुझे याद रहती हैं
बरसों की घटनाएँ
अब तुम्ही बताओ
उन गुजरे दिनों को
कौन सा लिबास पहनाएं
हर लिबास बासी और
पैबन्दों से भरा है
चुपचाप गुजर जाओ
मेरा एक विश्वास
आज जवान मौत मरा है .
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