मुझ से मत पूछ क्या है
तेरा इश्क .
कभी प्यास तो कभी दरिया है
तेरा इश्क .
तुम्हें देख खुदा में यकीन आ गया
कभी कुफ्र तो कभी इबादत है
तेरा इश्क .
तुम्हें जानने से पहले जाना न था दर्द मैंने
कभी आंसू तो कभी कहकशां है
तेरा इश्क .
अपनी ज़िन्दगी सा तराशा है, तेरा हर कौल हमने
कभी पत्थर तो कभी शीशा है
तेरा इश्क
तेरी उल्फत ने भुला दी, वक़्त कि तमाम हिदायतें
सदियाँ गुजर गयीं, फिर भी नया नया सा है
तेरा इश्क.
...........
मेरे जैसे और भी मिल जायेंगे
तमाम घर इस जहान में.
ऊंची दीवारें तो हैं
मगर खिड़की नहीं जिन मकान में.
खिलौने बिकते देख अज़ब दर्द है
बच्चे की जुबान में
वो जानता है भूखी माँ
बेच रही है इन्हें नुकसान में
..........
आँखें बंद कर लोगे तो दिल में उतर जायेंगे
दोस्त ये लम्हे बहुत दूर तलक जायेंगे
ऐ खुदा उन्हें लम्बी उमर दे
हर बात में कहते हैं तुम्हारे बिना मर जायेंगे
...........
मेरी पलकों पे तेरे ख्वाब रख गया कोई
मेरी साँसों पे तेरा नाम लिख गया कोई
चलो ये वादा रहा तुम्हें भूल जायेंगे
इस क़ायनात में गर तुमसा दिख गया कोई.
No comments:
Post a Comment