Ravi ki duniya

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Thursday, January 28, 2010

बिन चमचा सब सून



अगर आप नौकरी पेशा हैं तो आपको ये तजुर्बा होगा कि चमचागीरी  एक महत्वपूर्ण कला है। हाँ, कम्प्युटर से भी महान और शाश्वत! नौकरी के दौरान कदम-कदम पर आपको चमचों और उनकी कला से दो-चार होना पड़ता है। दफ़्तरों में विदाई समारोह बड़े ज़ोर-शोर से आयोजित किए जाते हैं। आपका विदाई समारोह हो तो भाषण सुनकर आपको वाकई लगने लगता है कि आप कितने महान हैं और ये लोग अब कैसे जिएंगे। घबराएँ नहीं ऐसा कुछ नहीं है। आप महज उतने ही महान हैं जितना आपकी बीवी और बच्चे आपको समझते हैं, बाकी सब हवा....हवा....है।

      जिस प्रकार विदाई समारोहों में फूलों की माला से लेकर गुणों का झूठा-सच्चा बखान तक तय होता है। उसी प्रकार हर चमचे का रोल तय होता है। जैसा काम  वैसा चमचा। चमचा बिन सब सून । चमचों ने न जाने कितने अफसर निकाल दिये, उनकी एक्सपर्टीज वैसी ही है जैसे शादी में बिचौलिये की  होती है। अपने अफसर की बदली या विदाई के समय चमचों की दशा बहुत दयनीय हो जाती है। यद्यपि तजुर्बेकार चमचे ऐसे भौतिक परिवर्तनों से घबराया नहीं करते।
शादी ब्याह में गिफ्ट चैक और लिफाफा कल्चर से पहले बड़ी किल्लत थी। परिणामतः कई-कई टेबल, लैंप, लेमन सेट, ट्रे सेट, बिजली की इस्त्रियाँ हो जाती थीं मगर विदाई समारोहों के गिफ्ट बजट के अनुसार तय से हैं यथा सूट केस, दीवाल घड़ी। थर्मस सेट, ट्रे सेट आदि। विदाई वाले दिन अफसर सूट या सफारी में आते हैं। सब उनकी स्तुति चिर परिचित शब्दों में करते हैं। साथ ही साथ गणित भी लगाते जाते हैं, इसकी जगह कौन आएगा, किसको क्या विभाग, क्या पोस्टिंग मिलेगी? बनर्जी की जगह नायर बाजी न मार ले जाए। माथुर तो लंबी छुट्टी पर है। शर्मा आजकर बहुत साहब के साथ देखा जा रहा है, जुगाड़ भिड़ा रहा होगा। बहुत चालू है। चमचागीरी  में तो जैसे डिप्लोमा किए हुए हैं। बिल्कुल गुप्ता पर गया है। कई मैनेजर आए गुप्ता के बिना उनका काम  ही नहीं चलता। गुप्ता को उनकी कार का दरवाजा खोलने में भी कोई गुरेज नहीं, वह भी इस करीने के साथ खोलता है जैसे कोई ऑरकेस्ट्रा की परफॉर्मेंस दे रहा है और इस कार्य को उसके सिवाय कोई कर ही नहीं सकता। मिसेज गुप्ता भी लेडीज़ क्लब में बॉस की बीबी के साथ इस तरह सटी रहती है जैसे दोनों जुड़वा ही पैदा हुई थी।
चमचागीरी पर गहन शोध की आवश्यकता है. इस से बहुत ही रोचक तथ्य और आँकड़े उजागर होंगे. जैसे चमचे हर वक्त क्यों एक फिक्स मुस्कान अपने चेहरे पर रखते हैं. होठों का वह खिंचाव जो मुस्कान के बतौर पास हो सके वह कितने दिन के अभ्यास से आता है, क्यों उनके शब्दकोश में नहीं होता ही नहीं. बॉस जहाँ स्थित है उसके कितने चुम्बकीय  क्षेत्र में उनकी दुम किस रफ़्तार से हिलती है. चमचागीरी कि कोई यूनिट भी तय होनी चाहिये ताकि बॉस यह सुनिश्चित कर सकें कि कौन स चमचा कितनी पुचकार अथवा फटकार का अधिकारी है व गोपनीय रिपोर्ट में वह कहाँ स्टेंड करता है, चमचागीरी कि इतनी गला काट प्रतिद्वंदिता के बावजूद चमचागीरी नापने का क्षेत्र अंधकार में है. अतः इस पर स्रोत सामग्री (साहित्य) की विकट आवश्यकता है. ताकि चमचों में बढ़ते हुए रोष को रोका जा सके व उनका निष्पक्ष आंकलन किया जा सके. इस के अभाव में बॉस को बहुत  ही भोंडे व बेकार किस्म के आउटडेटेड तरीकों का सहारा लेना पड़ता है. जैसे दफ़्तर में आपका काम. आपकी सेल्स,मारकीटिंग की उपलब्धियाँ, कितनी फ़ाइल क्लियर हुईं. आपकी नियमित उपस्थिति आदि आदि .साबुन-चाय कॉफी के साथ मुफ्त बाँट बाँट कर चमचों का पीछे बहुत अवमूल्यन किया गया है. कभी सोचा है चमचे ही क्यों ? थाली कटोरी क्यों नहीं. यह चमचे की सर्वव्यापकता व लोकप्रियता को तो इंगित करता ही है साथ ही ऐसे क्रियाकलापों ने चमचे को बहुत चीप भी बना दिया है.
अब समय आ गया है की गोपनीय रिपोर्ट के पुराने ढर्रे को जड़ से उखाड़ के फेंक दिया जाए. इस आधी-अधूरी प्रक्रिया से क्या हासिल जो आपकी प्रतिभा और वास्तविक उपलब्धियों का कोई लेखा-जोखा ही न रख सके. एक बॉस ट्रांसफर पर जाते समय दूसरे बॉस से कह जाए की अमुक बहुत अच्छा चमचा है तब तो ठीक वरना आपकी सारी मेहनत बेकार हो गई. फिर क. ख. ग. से शुरू करो . भारतवासियों की काहिली और पिछड़ेपन का एक कारण यह भी है की अपनी भूगोल,खगोल और अंतरिक्ष की खोजों का कोई लिखित रेकॉर्ड रखा ही नहीं सब मुंहजबानी काम चलता रहा. बाद में इन्ही क्षेत्रों में दूसरों का मुँह ताकते हैं. यही हश्र चमचागीरी का होनेवाले है. यदि हम चाहते हैं की यह कला भी हमारे देश से लुप्त न हो जाए तो चमचों की इस वास्तविक समस्या पर गंभीर रूप से गौर करने की ज़रूरत है. चमचे जिन्हें ईर्ष्या का पात्र सुपर स्टार होना था वे समुचित रेकॉर्ड के अभाव में करुणा के पात्र एक्स्ट्रा बन जाते हैं. अतः गोपनीय रिपोर्ट का नया फ़ॉर्म डिज़ाइन किया गया है. इसे अंग्रेजी में सी.आर. ( कोन्फिडेंसियल रिपोर्ट ) कहा जाता है. नए पुनर्गठित ढाँचे में भी सी.आर. कहा जाएगा अर्थात चमचीय रिपोर्ट.

                   चमचीय रिपोर्ट
                     वर्ष ......

  1. चमचे का नाम :
  2. चमचे की आयु
  3. चमचे का अन्यथा पद
  4. चमचे का अन्यथा कार्यस्थल
  5. चमचागीरी का पिछला अनुभव
(प्रमाण-पत्रों/ प्रशंसा-पत्रों की प्रति सलंग्न करें)
रिपोर्ट देने वाले अधिकारी द्वारा मूल्यांकन
  1. स्वागत/विदाई समारोहों में भूमिका
  2. क्या वह प्रसन्नता से =
(1)   बच्चों को स्कूल ले जाता है
(2)      उनकी फीस जमा कराता है
(3)      गैस/राशन/सब्जी लता है
  1. दिन में नमस्ते करने की औसत संख्या
  2. अभिवादन करते समय शरीर का ज़मीन से कोण
  3. साहब के बच्चों को बाहर घुमाने के स्थान/संख्या
  4. चमचे को पिछले वर्ष दी गयी डांट का ब्योरा
  5. चमचे ने कब/कितनी बार कार्यालय के काम व अपने घर के काम की अनदेखी कर अफसर के यहाँ हाज़िरी बजाई है ( स्थान कम पड़ने पर अलग शीट लगाएं)
  6. क्या वह पदोन्नति के लायक है
( चमचे की उच्चतर जिम्मेवारी को स्वीकार करने की इच्छा व योग्यता को ध्यान में रख कर भरा जाए )

पहले ज्योतिष और जादू पर पाठ्यक्रम नहीं थे मगर आज हैं. इसी प्रकार चमचागीरी पर पाठ्यक्रम चलाये जाने चाहिए ताकि नयी पीढ़ी को  दिशा ज्ञान हो सके प्रारंभ में सर्टिफिकेट कोर्स इन चमचालोजी, डिप्लोमा इन चमचालोजी के कोर्स रखे जायें. आइ.सी.आइ. (इंडियन चमचालोजी इंस्टीट्यूट ) व आइ.आइ.ए.सी. ( इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड चमचालोजी ) खोले जायें. तत्पश्चात इसके विभिन्न बारीक पहलुओं पर शोध कार्य हो जैसे चमचागीरी के लंबे इतिहास में वह कौन सा डार्क पीरियड था जब मनुष्य की दुम गायब हो गयी. ज़िला/राज्य व अखिल भारतीय स्तर पर अधिवेशन /सेमिनार हों. विभिन्न स्तर पर प्रतियोगिताओं में चमचा-रत्न, चमचा-विभूषण, चमचा-श्री की उपाधियाँ प्रदान की जायें. अपने देश में अच्छी तरह पल्लवित पुष्पित होने के बाद इसे सार्क, गुट निरपेक्ष व कामनवैल्थ में सम्मान दिलाया जाए. हिन्दी भले महत्व न पा सकी मगर वह दिन दूर नहीं जब चमचागीरी पर यू.एन.ओ. को भी यूनिसेफ, यूनेसको की तरह यूनाइटेड नेशन्स इंटरनेशनल चमचागीरी फ़ंड स्थापित करना होगा .
दुनियाँ भर के चमचो एक हो जाओ !

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