कैसे बीती इस
बार की बहार
बता सकते हैं ये
लुटी डोली के कहार.
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हसरतों का महल कुछ इस तरह टूटा है
सब्र का दामन कुछ इस तरह छूटा है
हम चिल्ला भी ना पाए मदद को
तूने हमें कुछ इस तरह लूटा है
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कब तक मल्हारों के ताने सुनूंगा मैं
कब तक तुम्हारे बहाने सुनूंगा मैं
फिर चाहे मत आना आज आकर ये बता जाओ
कब तक मुलाक़ात के जाल बुनूँगा मैं
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तमन्ना नहीं राँझा या मजनूं बनूँ
तमन्ना नहीं किसी की रातों का जुगनूँ बनूँ
हसरत अगर थी तो सिर्फ एक
तमाम उम्र उसीका रहूँ मैं जिसका बनूँ
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बहकते हुए पाँव सही डगर पर आ जाते
कोई मंजिल से जो बांह पसार आवाज देदेता
हमारा भी सावन चैन से गुजर जाता
कोई झूले से जो पींग बढ़ा आवाज देदेता .
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आप छोड़ आये थे हमें हमारे हाल पर
मगर हम खुश रहे अपनी तनहाइयों में भी
टूटे दिल की आह लेकर किसकी बशर हुई
आप तड़पते रहे मुहब्बत की शहनाइयों में भी .
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अतीत की तूलिका अब भी
वर्तमान के कैनवास पर
दुखों के रंग बिखेर जाती है
ओ मेरी पर्यटक
क्या अब भी तुम्हें मुझे
याद करने की फुर्सत निकल आती है .
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सिवाय इनके प्रिय नहीं कुछ शेष
सिर्फ बचे हैं उजड़े दिल के अवशेष
चाहे ठुकरा दो या फूल समझ
सजा लो अपने केश .
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साथ तू रहे तो बंजर भी हरियाली है
साथ तू रहे तो अमावस भी उषा की लाली है
साथ तू रहे तो मैं मर के भी जी लूँगा
साथ तू रहे तो विषघट भी अमृत की प्याली है .
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करार मत दे लेकिन मैं दर्द भी नहीं चाहता
दवा मत दे लेकिन मैं मर्ज़ भी नहीं चाहता
यूँ किसके दिये पे किसकी बशर हुई आजतक
तू प्यार मत दे लेकिन मैं नफरत भी नहीं चाहता .
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तेरी आँखों का दीवाना नहीं मैं
लाखों की उँगलियों का निशाना नहीं मैं
सच प्रिये मुझ में यही एक फर्क है
हर एक शमा का परवाना नहीं मैं .
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मेरा दर्द मुझे जीने नहीं देगा
तेरी याद मुझे मरने नहीं देगी
ज़माना बड़ा ज़ालिम है ऐ दोस्त
आज अगर हम नहीं मिले
तो कल ये दुनिया हमें मिलने नहीं देगी .
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तेरी बेवफाई का गिला
मैं किस से करूँ ज़माना बेवफा है
अब तो गिला है मुझे
अपनी ही वफ़ा पर .
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अपने इशारों पर ज़माना लिए फिरती हो
हर एक सुर में एक तराना लिए फिरती हो
मेरी प्यास से पूछो कीमत अपनी आँखों की
दो आँखों में जहाँ भर का मयखाना लिए फिरती हो .
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मेरी मय्यत पर ना डालो फूल
तुम ज़िन्दगी भर मुझ पर हँसते रहे
आज फिर फूलों के बहाने
तुम चले आये मेरी मौत पे मुस्कराने .
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जिनके ख्याल में हम
दुनियां भुलाये बैठे हैं
उनकी बे-ख्याली को क्या कहें
वो हमी को भुलाये बैठे हैं .
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मुहब्बत के दस्तूर से
अभी वाकिफ नहीं हैं वो
मैं जब जब बुलाता हूँ
चले आते हैं वो .
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होंठ सिल के काटी है अब तक
आगे भी बशर हो जाएगी
आह भी की हमने
तो ज़माने को खबर हो जाएगी .
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लो उम्र की एक तारीख़ और
तुम्हारे नाम कर दी
तुम ना आयीं इंतज़ार में ही
शब तमाम कर दी .
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यादों के साए में जी लेंगे हम तुम्हारी कसम
हिज्र-ऐ-वीरां में काट लेंगे उम्र तुम्हारी कसम
किस कमबख्त को परवाह है अपने बर्बाद होने की
हर सांस में करेंगे तुम्हें आबाद तुम्हारी कसम .
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मेरी खामियों से उन्होंने जहाँ को
वाकिफ करा दिया
जिस बुत की मैंने की परस्तिश उसी ने मुझे
क़ाफ़िर बता दिया .
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मैंने भी खुद को ख़त्म करने की कसम खायी है
इस खुदी को बेखुदी से बदल लूँगा
तू खुश रह अपने गुले गुलज़ार में
मेरा क्या में तो कांटों से भी बहल लूँगा .
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जाने क्यूँ दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है
मेरे महबूब जब मेरे रूबरू होते हैं
बुने होते हैं जो प्यार के जाल
नज़र मिलते ही सब काफूर होते हैं .
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