Ravi ki duniya

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Tuesday, January 12, 2010

कितनी सुरक्षित है सुरक्षा


  
फिल्म शोले' में एक डॉयलाग था, गब्बरसिंह गरजता है “रामगढ़ वालो तुम्हें गब्बर के कहर से एक ही आदमी बचा सकता है, वो है गब्बर खुद” तो साब बस यूँ कह लीजिए बम से बम ही बचा सकता है। बस तो भाई साहब ! जब तक आप सुरक्षित हो, सुरक्षित हो, मगर हमारी नजर पड़ गई, तो ? तो क्या होगा ? कभी सोचा है आपने ? एक ग्रामीण कहावत है जिसका सभ्यतम तरज़ुमा कुछ यूँ है विधवा तो अपना वैधव्य काट दे, मगर विधुर उसे काटने दें तब ना' तो काका ! हम तो सुरक्षित हैं। हमें आप माफ ही करो। आप और आपकी शेख चिल्लियाना योजनाएं। आजकल एस.एम.एस. के माध्यम से एक लतीफा चल निकला है। भारतीय पुलिस को कैसे पता चला कि मुम्बई बम ब्लास्ट में पाकिस्तान का हाथ है। उत्तरः प्रेशर कुकर पर आई.एस. आई की मुहर लगी थी।
सुरक्षा एक मिथ है। आये दिन हम खबरे सुनते पढ़ते हैं कि लोग कहाँ कहाँ नहीं जा घुसते और अपनी कारगुजारी कर आते हैं। मनुष्य को आदिकाल से सुरक्षा' की तलाश ही है। यह सुरक्षा और कुछ नहीं एक मृगमरीचिका है। मनुष्य क्यों कि कमजोर है अतः जोर दिखाता रहता है और इस प्रॉसस में वह कन्फ्यूज रहता है। पहले आदमी मैदान में रहता था वहां साँप व अन्य जंगली जानवरों का भय था। फिर वह विक्रम और वेताल के वेताल की तरह पेड़ पर जा चढ़ा। वहाँ भी सुरक्षित नहीं था। न जाने कब टपक पड़े। जमीन पर मकान बनाये जाने लगे तो दीवारें खड़ी हो गई। दीवार में खिड़की। खिड़की में पारदर्शी काँच। काँच पर पर्दे और न जाने क्या क्या तामझाम। सयाने लोगों का कहना है ताले साँकल तो कुत्ते बिल्लियों के लिए होते हैं, चोरों के लिए नहीं। उसी तर्ज पर ये जो सुरक्षा है ये किससे है और किसके लिए है। तथाकथित विकसित देशों में सी.सी.टी.वी. वॉकी टॉकी, मेटल डिटेक्टर, सूंघने वाले कुत्ते, रैंडम चैक (सुरक्षाकर्मी जिसकी तरफ संकेत कर दें उसकी खोद खोद के जाँच) हर चौथे पाँचवें यात्री की पूरी जामा तलाशी ली जाती है। लेकिन एक बात बताइये इंसानियत के दुश्मन आतंकी कहां कहां सेंध नहीं लगा आते। वो जूलियस सीजर को मारने में कामयाब रहे, वो लिंकन, कैनेडी, मार्टिनलूथर, गाँधीजी, इन्दिरा, राजीव को तमाम सुरक्षा के बावजूद मार सके। जापान की मेट्रों में जहरीली गैस छोड़ सकते हैं। न्यूयार्क की जुड़वां गगनचुम्बी इमारत को ढहा सकते है।


किसी ब्रिलिएंट दिमाग ने यह घोषणा की कि लोकल ट्रेन में सीटों के ऊपर लगी सामान रखने की शैल्फ को हटा दिया जाए। फिर आतंकी बम कहा रखेंगे? हाय! कितने भोले हैं आप। सीट के नीचे, उसका क्या? आप कहेंगे उसकी जिम्मेवारी यात्री की खुद। हमने सूचना लगा दी है कि यात्री सीट के नीचे लावारिस वस्तु को देखें और सूचना दें। भई वाह ! कितनी आसानी से आपने ये गुत्थी सुलझा दी। पहले रोडवेज की बसों में लिखा रहता था सवारी अपने सामान की रक्षा स्वयं करें'। ऐसी ही पटि्‌टयाँ लगा दी जाएं सवारी बम से अपनी रक्षा स्वयं करें'। एक बात और है, रेल की पटरियां जो सभी तरह के इलाकों से गुजरती है। क्या जंगल, क्या आबादी, क्या खेत खलिहान क्या रेगिस्तान। उनकी सुरक्षा कैसे की जाएगी। वहां कौन से कुत्ते सूंघते फिरेंगे या कौन से मेटल डिटेक्टर काम में आएंगे।


प्रश्न यह है कि अब हम क्या करेंगे। क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें या गाल बजाते रहे या सॉलिड कुछ करें ऐसी कोई घटना अमरीका, इजरायल में होती तो क्या होता याद करें पंजाब का बुलेट फॉर बुलेट अभियान. किसी किसी को ब्लेम कर देने मात्र से समस्या हल नहीं हो जायेगी. भई आप क्या कर रहे हैं? कोई अन्य संगठन, कोई अन्य देश आपकी ऐसी तैसी करे और आप गाँधीगीरी दिखाते रहेंगे तो कैसे चलेगा? एक कहावत है कि कोई आपकी बे-इज़्ज़ती करे और आप उसे चुपचाप सह लें तो आप बे-इज़्ज़ती के ही लायक हैं. अपनी व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त करें साथ ही ये शांति का गौरव गान छोड़ें. शांति की जो कीमत है वो चुकायें न कि शांत रह कर खामियाजा भुगतें.
समस्या के मूल में जाएं सर जी ! एक रुपये के सिक्के छुपा कर ढूंढने मात्र से जनता बम ढूंढना शुरु कर देगी ये आपकी गलतफहमी है। प्रॉब्लम को दूसरे एंगल से देखें। रुपये (रोजगार) उन्हें दें जो बम रखते हैं। समझे आप? क्या आपको पता है बम ब्लास्ट में मारे गये ज्यादातर यात्री फर्स्ट क्लास के थे। रेलवे ने हरेक मृत यात्री के परिवार के एक सदस्य को रेलवे में क्लास फोर (गैंगमैन, खलासी, चपरासी) की नौकरी दी है और जनाब ! सबने ये नौकरी ज्वाइन कर ली है. समझे हज़ूर. ये बे-रोज़गारी है, लाचारी है. ये महज़ इक्नॉमिक्स है. पॉलिटिक्स तो बाद में हो जाती है.


आपने मशहूर शेर सुना होगा :


तू इधर उधर की बात न कर


ये बता कारवाँ क्यों लुटा


मुझे रहज़नों से नहीं कोई गिला


तेरी रहबरी का सवाल है।


इसके जवाब में जो शेर है वो बहुत कम ने सुना होगा :



मैं बताऊँ कि कारवाँ क्यों लुटा


तेरा रहज़नों से था वास्ता


मुझे रहज़नों से गिला नहीं


तेरी रहबरी पे मलाल है।






सो दोस्तो ! इल्तिज़ा है :






दुश्मन है गर तू, तो सीने पर घाव क्यों नहीं करता


और अगर मेरा है, तो अपनों सा बरताव क्यों नहीं करता।







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