कई बार अतीत कितना अस्तित्वहीन
जान पड़ता है .
वर्तमान कितना अनिश्चित और भविष्य ?
ऐसे व्यर्थ चिंतन में
भविष्य को स्थान नहीं होता
वो इतना अस्थिर होता है
और व्यक्ति इतना उलझा हुआ मूर्ख
कि भविष्य को नज़र-अंदाज़ कर देता है
वो जानता है उसका ये अपंग चिंतन
अतीत को सुख तथा वर्तमान को रोटी
तक नहीं जुटा पाया तो
भविष्य को पानी भी उपलब्ध
करा सकेगा ये संदेहास्पद है.
अक्सर ऐसे तथाकथित गहन चिंतन का
परिणाम मैंने यह पाया
कि जी में आता है
यूँ ही लक्ष्यहीन जीवन को
एक जोड़ी पाँव देकर
दिशाहीन तिलिस्मी वृत में छोड़ दूं
और भटकता रहूँ
ये समझ कर कि मैं
राह ढूंढ रहा हूँ
और .. और ..
भूल जाऊं
अपने अस्तित्वहीन अस्तित्व को
झुठला दूं एक डाक्टरी सत्य को
कि मैं ज़िंदा हूँ
..........
काँटों ने जो कसर छोडी
फूलों ने पूरी कर दी.
तेरी बेरुखी ने जान लबों तक
ला ही दी थी
तेरी मुस्कराहट ने मौत पूरी कर दी.
खुदा ने भी कैसे अजब रास्ते निकाले हैं
एक दिल में हज़ार तल्खी
बर्बादी पूरी कर दी.
आँखें जो बात कह ना सकीं एक उम्र तक
आंसुओं ने एक लम्हे में पूरी कर दी.
वैसे तो फरिश्तों ने मुझसे
ज़न्नत का वादा किया ही था
बाकी कसर तेरा नाम लेने ने पूरी कर दी.
बना के मुझे एक सितारा
तेरी छत पर जगह देदी
और इस तरह खुदा ने तेरे
दीदार की हसरत भी पूरी कर दी.
1. Your article on 'Khwabon Khayal' all the three stanzas are excellent piece of literature for educative purpose.
ReplyDelete2. Your article on 'Please Give Me Some Bribe' is a greate piece of 'Vyanga', which is the replica of present society having greate impact of the idiology of society, which is highly appreciated.
3. Articles on 'Soap and Miss Pratapgarh' are also remarkable piece of literature, which is putting light on the vital issues of present sociaty.
In all, the articles mentioned above are highly appreciated by me and I pray God, it will continue to give valuable guidance to the Society through your Vyanga and Articles. The style of writing the articles is highly excellent and meaningful. I Pray God for your long life and continuation of exhibition of feelings from you.
Thanking you,
With kind regards,
(A K Dayama)
SDPO/Bhusawal