लो जी इसी का इंतज़ार था. अब उन्होने हमारे बालीवुड के बादशाह को भी नहीं बख्शा. उस से भी पूछ ही लिया कि शाहरुख खान ? कौन शाहरुख खान ? जॉर्ज फर्नांडिज, अब्दुल कलाम के बाद अपने बाजीगर की बारी भी आ गयी. इस पर पूरे देश में प्रतिक्रिया हुई है. चेनलों को दिन भर कि स्टोरी चलाने का काम मिला. अब बेचारे वे भी क्या करें. उन्हे भी तो रोटी खानी है. बच्चे पालने हैं.
एक मंत्री जी ने तो यहाँ तक कह दिया कि अमरीकियों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए. तो क्या वहाँ भी कोई शाहरुख खान है या उसके जैसे हैं जो इंडिया में नाचना गाना चाहते हैं. नहीं तो 'टिट फॉर टेट' कैसे लागू होगा. अभी 60 साल पहले तक तो हमारी घिघी बांध जाती थी गोरी चमड़ी वालों को देख कर. अब ये डर हौले हौले ही जाएगा. अपने ही देश में जिस माल रोड पर वो टहलते थे उस पर हम माल तो ढो सकते थे.टहल नहीं सकते थे. तो सर जी हम इतने भयभीत रहते हैं की उन्हें एयरपोर्ट पर देखते ही बिछ जाते हैं. हमारे सारे चेनल,प्रैस ,सोशलाइट व पेज थ्री वाले उनके ही गीत गा रहे होते हैं. अर्थात माहौल तैयार कर रहे होते हैं. बिग ब्रदर ! प्लीज कम! कम सून! किस एंड गेट किस्ड बाई आवर हीरोइन्स.
एक बात बताइये हमारे एयरपोर्ट पर जहाँ गोरी चमड़ी,जॉनी वाकर की बोतलें और गांधी जी की तस्वीर वाली करेंसी इतनी कारगर होती है कि वे बेचारे सब के सब चकाचौंध हो जाते हैं और पूछने लगते हैं " ठंडा लेंगे या गरम ?.. क्या मैं आपको छोड़ आऊँ ?...प्लीज इधर से आइये ...! ग्रीन चेनल इधर है. कम अगेन " अब क्या करें हमारी परंपरा ऐसी ही है. 'अतिथी देवो भव' की. ऐसी कोई कहावत अमरीका में नहीं बनी. हमारे जी.आर.ई.,टोफ़ेल के युवा उम्मीदवार,डाक्टर,नर्स,इंजीनियर मजदूर सोते जागते वहीं के सपनों में खोये रहते हैं. कदम कदम पर इतना अपमान और मगिंग है तो ये हाल है कहीं वो आपको कुछ समझते होते तो क्या होता.
हमारे ऑफिस के कुछ सीनियर अफसर वहाँ ट्रेनिंग पर गए. वहाँ की मैस के, अधिकारियों से अजीब अजीब सवाल पूछने शुरू कर दिये क्या वो खाना अपने कमरे में ही खा सकते हैं. क्या वे लंच न खायें तो डिनर दो खा सकते हैं. दरअसल वे अपनी पत्नियों को भी सैर को ले गए थे तथा दो के पैसे खर्च नहीं करना चाहते थे. बाद में वहाँ से मैस कर्मचारियों ने शिकायत भेजी की इंडियंस, मैस में से खाना चुराते हैं. तो सोचिए भाई साहब वे हमें ऐसे ट्रीट करते हैं तो क्या गलत करते हैं. एक हम हैं की फिर भी वहाँ जाने को मरे जाते हैं. वो एक गाना था न 'ठुकराओगे ..ठुकरा लो ..हम ठोकर खा-खा कर भी तुम्हारे गीत गाएँगे " क्या आपने यू .एस . कोंसुलेट के बाहर वीसा के लिए लंबी लंबी कतारें नहीं देखीं.
मंत्री जी का टिट फॉर टेट फार्मूला इसलिये भी मुमकिन नहीं कि हम तो सबूत ही देते रहते हैं और देते रहेंगे और वो उन सबको ठुकराते रहेंगे. फिर हम सब से कहेंगे भाई साहब, अंकल जी ,...ताऊ जी...आंटी जी...जरा हमारे हक में उनसे कुछ कहो न... कहो की हमारा दाऊद हमे दे दें ...26/11 के आतंकी हमें सौंप दें ..पर एक बात बताओ हमें ये लोग मिल भी गए तो हम इनका करेंगे क्या ? जो पहले से हमारे पास हैं उनका क्या किया है हमने. सच तो यह है की हम माँगते रहें और वो न दें इसी में 'निर्मल आनंद' है. "तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूँ...मज़ा जीने का और बढ़ जाता है". दे ही दिये तो फिर नेक्स्ट क्या ? किसी शायर ने क्या खूब कहा है :
जब तक मिले न थे जुदाई का था मलाल
अब ये रंज है की तमन्ना निकल गई
जब मैंने कहा कि जी सब छोड़ो आप तो बस ये करो की हॉलीवुड की फिल्मों का बहिष्कार ही कर दो उनकी कोई फिल्म इंडिया में घुसने ही न दो. इतना सुनना था कि वो बिफर गए बोले फिर हम कैसे फिल्में बनाएँगे. उनकी स्टोरी,उनकी धुन, उनके प्लॉट सब कुछ तो हम उनकी फिल्मों से चुराते हैं. शाहरुख तो वहाँ जा कर अपमानित हुआ आप तो यहाँ बैठे बिठाये ही हमारे पेट पर लात मार रहे हैं .
तो सर जी अमेरिका ने तो सदैव ऐसा ही किया है और आगे भी करता रहेगा आप चाहें वहाँ जायें न जायें उनकी बला से. उन्होने तो आपको बुलाया नहीं है कि भाई आओ हमें अपना नाच दिखाओ .. गाना सुनाओ...आप अपनी ऊटपटाँग फिल्मों से इंडियंस को बेवकूफ बना सकते हैं अमरीकियों को नहीं. अमरीकी तो खुद दुनियाँ को बेवकूफ बनाते हैं.
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