Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Wednesday, January 20, 2010

सीपियाँ




देवदार के वृक्ष तले
निशा जब पलक खोले
प्रिय आकर मिलना
दूर पपीहा जब बोले
        जब हो संध्या उदास-उदास
        कोई न हो नयन वातायन के पास
        प्रिय आकर मिलना
        जब टूट  जाये अपनों  का विश्वास
समाज का कोई रिवाज जब तुम्हें घेरे
अग्नि बाध्य करे लेने को फेरे
प्रिय आकर मिलना
जब दूर हों मुक्ति के सवेरे
       व्यर्थ लगे जब यौवनावकाश
       क्रूर काल देने लगे अपना आभास
       प्रिय आकर मिलना
       जब शृंगार करे तुम्हारा उपहास
बुझ चुके हों जब सारे दीप
बिछुड़ जाए मोती से सीप
प्रिय आकर मिलना
जब प्रलय हो समीप

No comments:

Post a Comment