कॉन्फ्रेंस- सेमिनार तो आपने भी बहुत से देखे होंगे. कई में भाग भी लिया होगा. मगर जिस दिन हमारे कॉलेज में एक कॉन्फ्रेंस आयोजित करने का निर्णय लिया गया उस दिन से ऐसी अफरातफरी मची कि पूछो मत. एक तो सेमिनार, वो भी फ़िरंगियों का. ऐसा मालूम होता था कि इस सेमिनार में तनिक भी कमी रह गयी तो हो सकता है वो हमारे देश को दुबारा ग़ुलाम बना लें और इसका सारा आरोप सारा जिम्मा हमारा होगा.
हैल्थ वालों को ताकीद कर दी गयी कि ये जो कॉलेज-परिसर में कुत्ते,सूअर और बड़ी तादाद में कबूतर घूमते हैं उनका कुछ बदोबस्त किया जाए. बंदोबस्त इतना पुख्ता होना चाहिए कि फ़िरंगियों को अगर एक भी कुत्ता दिख गया तो खैर नहीं. अब हैल्थ वाले डॉक्टर साब सुबह शाम कुत्ते गिन रहे होते या फिर सूअरों को हाँक रहे होते.रोज़ाना शाम मीटिंग में वो लेटैस्ट फ़िगर बताते “जी कल शाम तक 13 सूअर, 8 कुत्ते और 126 कबूतर ही रह गए थे. प्रिंसिपल इन आँकड़ों से खुश तो दूर संतुष्ट भी दिखाई न देते.उन्हें अब डॉक्टर को परेशान करने और परेशान देखने में एक तरह का मज़ा आने लग गया था. घंटों मीटिंग में इस बात की चर्चा होती रहती की डॉक्टर आप कुछ उपाय नहीं कर रहे हैं. कुत्तों की और सूअरों की इस चुनौतीपूर्ण समस्या से कैसे निपटा जाए. हर तरह के सुझाव आते. छर्रे वाली बंदूक का सुझाव इसलिये नहीं माना गया कि इस से सूअर मरेगा नहीं और कबूतर जिसे डराना भर है, मर जाएगा
जहाँ कॉलेज परिसर में मोर, चिड़िया तोतों की मौज थी. वहीं इन तीनों के अस्तित्व की रक्षा का गंभीर प्रश्न था. कबूतरों के लिए किसी कंपनी की जैली लाई गयी,जिसे इमारत पर छिड़क देने से कबूतर वहाँ नहीं बैठ पायेंगे. किसी ने उड़ा दिया कि यह जैली जहरीली है और कबूतर दनादन मरेंगे. ये खबर किसी तरह जानवरों के अधिकारों की रक्षा में सक्रिय संस्था को मिल गयी. कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि अंदर के ही किसी व्यक्ति ने इस संस्था को खबर दी थी. बहरहाल वहाँ से महिलाओं का एक दल आया जिसका नेतृत्व एक ऐसी महिला कर रही थी जिसे देखते ही आपकी घिघी बंध जाना लाज़िमी है. उसने जो आकर खबर ली तो बच्चू सबकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी. सब घबड़ा रहे थे की कहीं जितने कुत्ते सूअर भागे हैं कहीं उतनी ही संख्या में वो आदमियों को न मार डाले . ठीक ही तो है. आँख के बदले आँख. जान के बदले जान. उसको देखते ही सारे प्रोफेसर कबूतर जैसे हो जाते. जैसे जानते ही नहीं कि कॉलेज में कुत्ते, सूअर भी हैं. सब यही कहते हम तो पढ़ाने आते हैं पढ़ा के सीधे घर चले जाते हैं.हमें नहीं पता कि कॉलेज में विद्यार्थियों के अलावा कोई अन्य जीव जंतु भी हैं एक आध ने तो यह कहा कि उनका पशु-पक्षी प्रेम तो जग जाहिर है. वो तो कुत्ते,सूअर,कबूतर को दाना खिलाये बगैर कौर भी नहीं निगलते.लेकिन वो मेनका की चाची कहाँ मानने वाली थी सबको डराया-धमकाया,अपनी खूब खातिर कराई और अगले दिन अख़बार में छाप भी दिया कि कॉलेज के दरिंदे प्रिंसिपल और प्रोफेसर मिल कर निरीह,भोलेभाले सूअर और कबूतरों को डरा रहे हैं और कुत्तों को धर्मेन्द्र वाले स्टाइल में धमकाते हैं. अख़बार में खबर छपते ही प्रिंसिपल और प्रोफेसर भीगी बिल्ली बन गए. इधर कुत्तों और सूअरों को कहीं से खबर लग गयी की अब उनका भी कोई हिमायती है. वे निडर हो कर इधर-उधर घूमने लग गए और जहाँ तहाँ मुँह मारने लगे. जानकार बताते हैं कि कुछ मोर तो डिप्रेशन में चले गए और एक-दूसरे से यहाँ तक कहने लग गए “ कलियुग है जी कलियुग ! इसी को कहते हैं कलियुग. हमें कोई पूछ नहीं रहा. कहने को हम राष्ट्रीय पक्षी हैं. सबका ध्यान नालायक कबूतरों पर है जिन्हें बीट तक करने की तमीज़ नहीं. भला ये भी कोई बात हुई बरसों से गुटरगूँ से आगे कुछ भी नहीं . इधर कॉलेज के चिड़िया, तोते, मैना कबूतरों को चिढ़ाते उड़ रहे थे “भई ये तुम्हें क्या डॉक्टर ने बताया है कि बिल्डिंग में रहो ..बड़े शाही ठाठ हैं तुम्हारे. ये तो होना ही था. क्यों नहीं हमारी तरह शुरू से ही पेड़ों पर रहने की आदत डालते...हमें कोई हाथ लगा कर दिखाये. ...पेड़ काटने के भी कानून हैं. अमिताभ बच्चन भी अपने घर का पेड़ नहीं काट सकता “. अब कुत्तों और सूअरों के भय खुल गए थे. क्या प्रिंसिपल क्या प्रोफेसर सब के सामने वो शान से अपने पूरे परिवार के लश्कर के साथ गुजरते थे मानो ये कॉलेज मूलत इन्ही के लिए खोला गया है. वो किसी प्रोफेसर को देखते ही एक दूसरे के नज़दीक ऐसे आ जाते जैसे आपस में कानाफूसी कर रहे हों “ इसे देख रहे हो न, इस से बच के रहना, कुछ कहे या ऊँची आवाज में भी बात करे तो मुझे बताना, अगली बार इसी का ट्रान्सफर कराना है “
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