Ravi ki duniya

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Sunday, January 17, 2010

गुठखा खाने के फायदे

बचपन में एक लघुकथा सुनी थी. आपने भी सुनी होगी. बीडी सिगरेट पीने वालों  के घर में कभी चोर नहीं घुसते. उन्हें कुत्ता नहीं काटता और उनको कभी बुढापा नहीं सताता. रात भर खांसते रहते हैं सो चोर समझ जाता है कि घर में सब जागे हुए हैं. कुत्ता नहीं काटता क्योंकि कमजोरी और बीमारी के चलते सदेव लाठी के सहारे चलते हैं. बुढ़ापा नहीं सताता, कारण कि वे जवानी में असमय ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं. मैं हतप्रभ रह गया जब हाल ही में एक परिचित ने मुझे सुदूर राजस्थान से सूचना दी कि वह मुंबई जा रहा है. जहाँ एक गुठखा कंपनी से उसे छिपकलियों का बहुत बड़ा आर्डर मिला है.
आप सभी गुठखा प्रेमी भाइयों और बहनों (गुठखा प्रेमी माता-पिता तुली तो जीवित बचे ही नहीं होंगे) को मेरा सुगन्धित और झन्नाटेदार प्रणाम. आप लोगों की तो गुठखा रचित मुस्कान ही इतनी भन्नाट होती है कि इस पर कोटि-कोटि कैंसर जीवाणु कुर्बान हैं. जिस तरह 'हरिगुन लिखा ना जाई' उसी तरह गुठखा खाने के अनेकानेक लाभ हैं. कहीं आप मुझे किसी गुठखा कंपनी का मार्केटिंग मेनेजर ना समझने लगें इसलिए यहाँ केवल कुछ ही 'गुण' बता रहा हूँ. अन्यथा यूँ तो  ' हरी अनंत ... हरी कथा अनंता '
पहला फायदा तो यह है कि गुठखा के चलते समाज में एक समरसता आ गयी है. गुठखा अरबपति, करोडपति, लखपति. कारोबारी , गो कि सिवाय गुठखा निर्माताओं के सभी खा रहे हैं. मजदूर , रिक्शाचालक, ट्रक ड्राईवर खा रहे  हैं. स्मगलर खा रहे हैं, पुलिसवाला खा  रहा है . गुठखा नेता खा रहा है, वोटर खा रहा है. अतः गुठखा समाज में व्याप्त भेदभाव को मिटाता है.


दूसरे, आप पांच रुपये से लेकर पचास रुपये रोजाना गुठखा खाने में खर्च करते हैं. पैसा क्या है. हाथ का मैल है. यह सब माया है. इसे जल्द से जल्द दूसरे को प्रेफ्रेब्ली गुठखा निर्माता को सौंपकर भव सागर से निकल लीजिये. अतः गुठखा आपको माया-मोह के जंजाल से मुक्ति दिलाता है.


तीसरे, गुठखा खानेवाले का मुंह हमेशा बंद ... चबाने में व्यस्त रहता है . उसे फोन का आना .. बात करना.. आगंतुक का आना दुश्मन सा लगता है. कारण कि अभी अभी तो मुंह में डाला है और ये बैरी कहाँ से आ गया. अब थूकना पड़ेगा. लब्बोलुआब यह है कि गुठखा खाने से वाणी में संयम रहता है. सभी संयमो में सर्वोपरि वाणी का संयम है. अतः गुठखा आपको आपके जीवन में संयम सिखाता है और बाद में आपके जीवन को यम को सौंप देता है.


चौथा, आपने सुना ही होगा कि चाँद में भी दाग है. तो सर जी पान- गुठखा खाने वालों कि शर्ट-पेंट
कुरता-पजामा, रुमाल में आप सदैव सुन्दर सुन्दर मनमोहक दाग पाएंगे. ये आपको प्रकृति  के करीब ले जाते हैं कि जगत में सभी कुछ ही तो नश्वर है. सब में दाग है. आपके दांत हों, मुंह हो या गला हो. आपके कपडे हों या फेफड़े हों दफ्तर के गलियारे हों या फिर सीढ़ियों  के कोने . इस से आप संसार को सही ' पर्सपक्टिव ' में समझ पाते  हैं और हर चीज़ हर क्षेत्र में आदर्शवाद ढूँढने कि मूर्खता से बच सकते  हैं. अतः गुठखा आपको प्रकृति के करीब लाता है. भले थूकते वक़्त ही सही.


पांचवां ये जो इतने बड़े बड़े सरकारी और ग़ैर सरकारी अस्पतालों में कैंसर वार्ड बने हुए हैं इनका क्या फायदा और उपयोग अगर मरीज़ ही ना होंगे. आप नहीं जानते आपके इस गुठखा खाने की वजह से कितने उद्योग धंधे चल रहे हैं. गुठखा निर्माता, उसकी फेक्टरी काम कर रहे मेनेजर, मजदूर, वितरक, दूकानदार, अस्पताल, डेंटिस्ट, डाक्टर, नर्स, कमपौंडर,केमिस्ट,कीमोथिरेपी, रेडिएशन वाले, सबकी रोजी रोटी आपके गुठखा खाने से चल रही है. आपको पता भी है की आपके गुठखा खाने से अर्थव्यवस्था को कितना बड़ा और मजबूत सहारा मिल रहा है.


छठा फायदा लोग कहते हैं कि गुठखा खाने से नपुंसकता आ जाती है. अब इसके भी बहुत लाभ हैं. भारत की जनसँख्या दिन दूनी रात आठ गुनी बढ रही है . गुठके से इसमें कुछ तो ब्रेक लगेगा .सुना है गुठखा प्रमियों का गुठखा प्रेम इतना बलवती होता है कि अन्य किसी भी प्रेम के लिए इसमें गुंजायश ही  नहीं रहती . ' प्रेम गली अति साँकरी जा में दो ना समाय ' अतः गुठखा शारीरिक संबंधों के लायक आपको छोड़ता नहीं. पीले-पीले बदबूदार दाँत, बदन दर्द, टांगों में दर्द, जोड़ों में दर्द, सो आप जुड़ नहीं पाते. और एक प्रकार कि विरक्ति ले लेते हैं . इसी विरक्ति -- इश्क-ऐ-हकीकी के विषय में कबीर और रहीम जैसे संतों ने जोर दिया था. गुठखा आपको आसक्ति सांसारिक प्रेमपाश, सेक्स की भूख (पेट की भूख तो पहले से ही तबाह होती है )से दूर रख आप में संतई की उदात्त भावना का ऐसा विकास करता है... ऐसा विकास करता है कि आप बरबस ही कह उठते हैं :
                                       दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं
                                       बाज़ार से गुजरा हूँ खरीदार नहीं
भाइयो और बहनों ! अब आपको मालूम हुआ की गुठखा खाने से खाट पकड़ने तक अनजाने ही आप अपना और जगत का कितना भला कर रहे हैं. वसुधेव कुटुम्बकम . एक सज्जन बता भी रहे थे की गुठखा मुंह में डालते वक़्त आदमी सर उठा कर आकाश की तरफ क्यों देखता है. दरअसल वह खुदा से कह रहा होता है कि " हे परवरदिगार ! बस मैं आ ही रहा हूँ तेरे पास "


'

4 comments:

  1. Sir,
    "Aap ki tarif mein likhen, jitne bhi labz wo kum hain,Jinke Daftar me aap Jaise Ravi (Suraj) hon, Voh Khusnasib hum hain,Khud jo Ravi hain unhe sitaron ki jhilmilahat se kya wasta,Ravi ki roshni me jo nazar nahi aate, wo jugnu hum hain"
    Sir,
    Apki 8 January ki "Sunahari dhup ki Chhawn tale" ki wo kavita..Tum kya uthe aur..Dil dekhiye..bahut pasand Ayee..
    Sir,
    Sir,
    Aaj ka...Guthkha khane ke fayade bhi bahut majedar hai..ghar me sabhi ko pasand aya...

    Aap bas yun hi likhte rahiye yahi hamari Shubhkamna hai..
    ....R. P. Shilpkar

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  2. If at all some one deserv the simly with a great Vyangkar like Sh, Hari S Parsaiji of jabalpur , it you and only you Sir,i had read your viws and poetry in many articles in news papers . Your art of putting coplex problems of the society like corruption,cancer and other problems plaguing the system in very humourous way so as to get it digested by one and all..
    Surinder k pushkarna

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  3. आपकी रचना - इन्टरव्यू एक उभरती हीरोइन का-मूल रूप में आज पढा।

    लेकिन आपने पहले ही हमें बांट रखा था इसका नाट्य रूपांतरण, हम ( प.रे. वाले) दोनों ही रूपों को हमेशा याद रखेंगे।
    आपकी प्रतिभा के हम हमेशा कायल हैं।

    शंकर अलबेला, मुं.रे.वि.निगम

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  4. excellent Vyang sir.....anu

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