ये इंटरव्यू की परंपरा मेकाले की देन है अथवा आदम और ईव की इसमे विवाद हो सकता है. मगर इसमे कोई विवाद नहीं कि इंटरव्यू के चलते बड़े-बड़े तीसमारखा मार खा गए हैं. जिस किसी ने भी इंटरव्यू का आविष्कार किया होगा उसे आज भी बड़ा परपीडक सुख ( सेडिस्टिक प्लेजर ) मिलता होगा. जब बड़े-बड़े महारथी इंटरव्यू टेबल पर धराशायी हो जाते है अर्थात डी.ओ.टी. हो जाते हैं. डाक्टरी भाषा में ‘ डाईड ऑन टेबल ‘ इंटरव्यू के नाम से ही बदन में फुरफुरी आ जाती है. कमजोर दिलवालों की टाँगे काँपने लगती हैं . इंटरव्यू ऐसे ही है जैसे ऑपरेशन. अब छोटा हो या बड़ा, ऑपरेशन तो ऑपरेशन है और सुन कर ही रोना-धोना शुरू हो जाता है.
इंटरव्यू तरह तरह के होते हैं. बच्चों को नर्सरी में दाखिला कराने से लेकर ब्युटि कांटेस्ट तथा नौकरी पाने के लिए. मजे कि बात है कि इंटरव्यू का कोई निर्धारित पाठ्यक्रम (सिलेबस ) नहीं होता. ‘मैं भारत का प्रधानमंत्री होता’ अब यह सवाल आप किसी भी स्तर पर नर्सरी के बाबा से लेकर ब्युटि कांटेस्ट की बेबी तक से पूछ सकते हैं. नौकरी में पूछे जाने वाले सवालों को एकत्रित कर लें तो रोचक संस्मरणों का एक विशाल संग्रह तैयार हो जाएगा. मसलन आप यहाँ कैसे आए ?, आप यहाँ क्यों आए ?, आपके साथ कौन आया है ?. आप कैसे वापस जायेंगे ? आप रोजाना कैसे ऑफिस आयेंगे. आपको ये नौकरी क्यों चाहिये. मैंने अपने परिचित से जब एक लड़के की सिफारिश की तो उसने लड़के को इंटरव्यू में फ़ेल कर दिया.पूछने पर बताया अरे भई इंटरव्यू को भेज रहे थे लड़के को कपड़े तो ढंग के पहनाए होते. बिल्कुल ‘डरटी’ लग रहा था. हम चुपचाप बैठ गए. अगले साल फिर इंटरव्यू था. वो ही सज्जन थे. उन्होने फिर फेल कर दिया. पूछने पर बोले ‘ अरे यार कमाल करते हो क्लास फोर के इंटरव्यू को भेज रहे हो और कपड़े वो हमसे भी अच्छे पहने हुए था. अरे भई क्लास फोर, क्लास फोर जैसा तो लगे. ये काम क्या करेगा. अपने कपड़ो की क्रीज़ ही संभालता रहेगा. बहरहाल इंटरव्यू की महिमा निराली है.
अक्सर इंटरव्यू में एक सवाल हॉबी के बारे में जरूर पूछा जाता है. और इसका जवाब “कोई हॉबी नहीं है” से लेकर “ रीडिंग, बर्ड वाचिंग, सोशल वर्क , क्रिकेट, पोइट्रि” कुछ भी हो सकता है . इस से कुछ फर्क नहीं पड़ता सिवाय इसके कि अगर बोर्ड के किसी मेंबर की हॉबी और आपकी हॉबी एक ही निकल आई तो आपकी पौ बारह भी हो सकती है. और या फिर दनादन सवाल कर के आपको आपकी ही हॉबी में चारों खाने चित्त गिराया जा सकता है. मसलन क्रिकेट की बॉल का वजन कितना होता है. शुतुरमुर्ग के पंखों की चौड़ाई क्या होती है. या फिर बुर्कीना फासो की राजधानी क्या है. एक उम्मीदवार जब लगातार कठिन सवालों का जवाब नहीं दे पाया तो उस से पूछा गया “ वॉट डू यू मीन बाई टिम्बक्टू “ उम्मीदवार झुँझला के बोला “ इट मीन्स आई एम नौट सेलेक्टेड “ एक उम्मीदवार ने अपनी हॉबी शिकार खेलना लिखी . उस से पूछा गया कि वह जंगल में जा रहा है और अचानक शेर आ जाए तो वह क्या करेगा.
वह बोला “ सर जी मैंने क्या करना है फिर जो करना है शेर ने ही करना है “
एक मेंबर सभी उम्मीदवारों से एक ही सवाल पूछ रहे थे. भारत के तीन महान व्यक्तियों के नाम बताओ. एक उम्मीदवार ने कहा “ सर गांधी जी , नेहरू जी और एक्सकयूस मी क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ ? ”
एक बार एक मेंबर अपने उम्मीदवार को एक सवाल लीक कर आए कि मैं तुम से 25 को 25 से मल्टीप्लाइ करने को कहूँगा. तुम तुरंत मौखिक बता देना, प्रभाव पड़ेगा.इंटरव्यू में उन्होने उम्मीदवार से अभी “25 को 25..” ही कहा था कि उम्मीदवार चिल्ला पड़ा 625. सभी मेंबरओ ने दाँतो तले उंगली दबा ली और जिसने सवाल पूछा था वो बगलें झाँकने लगे. बाकी मेम्बर्स ने बाद मे समझाया भले मानस उम्मीदवार को यह भी तो बता देना था कि सवाल पूरा हो जाने पर ही जवाब दे. एक इंटरव्यू में हमारे मित्र एक उम्मीदवार से उसकी हॉबी ‘गज़ल और गीत गाना ‘ लिखी देख पूछ बैठे “गज़ल और गीत में क्या अन्तर होता है “ उम्मीदवार ने साफ़ कह दिया “ साब मुझे नहीं पता आप ही बता दीजिये “ मित्र छत कि तरफ ताकने लगे. बोले मैं इंटरव्यू ले रहा हूँ या दे रहा हूँ, आप जा सकते हैं . इतना सुनना था कि उम्मीदवार एक दर्दभरी गज़ल गाने लगा. तब उन्होने समझाया कि वे कह रहे हैं आप जा सकते हैं न कि आप गा सकते हैं.
मेरे दफ़्तर में एक कवि कर्मचारी की पदोन्नति का इंटरव्यू था. वे लक़दक़ सफ़ेद कुर्ते पाजामे में प्रकट हुए. सभी अधिकारियों से सादर हाथ मिला कर वंदन किया और सबके हाथ में एक एक फूल दिया. उनसे पूछा गया साइकल एडवांस किसे मिलता है बोले आप मालिक हैं जिसे चाहे दे सकते हैं. उनसे पूछा गया ये त्योहार एडवांस क्या बिना त्योहार भी मिल सकता है. बोले आप मालिक हैं जब चाहे दे सकते हैं. जाते जाते कह गए आप कवि हृदय हैं इस गरीब कवि का ध्यान रखिएगा. होनी को कुछ और ही मंजूर था. सज्जन फ़ेल हो गए. खबर सुन सीढ़ियों पर ही बेहोश हो गए. एंबूलेंस में अस्पताल ले जाये गए, सुनने वाले बताते हैं उस दिन से उनकी कविता में इतना दर्द समा गया कि सुनने वाले या तो सह न पाने के कारण उन्हे देखते ही भाग छूटते हैं या फिर हँसते हँसते लोटपोट हो जाते हैं.
एक उम्मीदवार ने अपनी हॉबी पोएट्री लिखी जब उनसे कुछ सुनाने को कहा गया तो वो बोले
इश्क़ पर ज़ोर नहीं ये वो आतिश गालिब
सुनते ही इंटरव्यू कमेटी के एक सदस्य उठ के खड़े हो गए और उम्मीदवार से भावविभोर हो कर गले मिले और बोले “इतने सालों तक मुझे यही बताया गया और मैं इसी गलतफहमी में रहा कि आप इस दुनियाँ से कूच कर गए हैं. माफी चाहता हूँ ग़ालिब साब मैं तो आपका बहुत बड़ा फैन रहा हूँ. एक उम्मीदवार से जब भारत की राजधानी पूछी गयी तो उसने कहा गुड़गांव . जब उस से कहा गया कि भाई ठीक से सोच समझ कर जवाब दो. ये तुम्हारी नौकरी का सवाल है वह बोला अगर दिल्ली बताऊँगा तो नौकरी मुझे दे दोगे.
एक प्रशिक्षण कॉलेज में एक वृद्ध अधिकारी ने ट्रेनिंग के उपरांत होने वाले इंटरव्यू में प्रिंसिपल महोदय के पाँव ही पकड़ लिए “हुज़ूर आप पहले भी एक बार फ़ेल कर चुके हैं इस बार जरूर पास कर दें नहीं तो नाती पोतों को क्या मुँह दिखाऊंगा. ट्रेनिंग कॉलेज के प्रोफेसरों कि ट्रैजिडी भी किसी ग्रीक ट्रैजिडी से कम नहीं होती. वे सोचते हैं कि पूरे दफ़्तर में वही बुद्धिजीवी और पढ़े-लिखे थे इसलिये उन्हे विशेष तौर पर इस काम के लिए सेकड़ों हज़ारों में से चुना गया है जबकि इतनी सी बात कल के पैदा हुए ट्रैनीस से लेकर संस्थान के बूढ़े माली या चपरासी तक जानते हैं कि आपको ये थकी हुई पोस्टिंग क्यों दी गयी है.
मेरे एक मित्र जब अपनी शादी के लिए लड़की का इंटरव्यू लेने गए तो पूछ बैठे कि क्या आप एग्री हैं . लड़की ने तुरंत नहीं में गर्दन हिला दी. वे मन मार कर लौट आए दाढ़ी बढ़ा ली और तलत महमूद के के गीत गाने लगे. फिर कई महीनों बाद स्थिति साफ़ हो पायी की लड़की नर्वस थी और समझी की पूछ रहे हैं की आप एंगरी हैं . अब भला लड़की बेचारी क्यों एंगरी होने लगी उसने फटाफट नहीं कर दी थी और उस नहीं के चलते हमारे मित्र देवदास होते होते बचे. हम लोग आज भी यह प्रसंग याद करते हैं और हँसते हैं वो बात और है कि घर गृहस्थी के झंझट और बच्चों की रेलपेल में अब वे दोनों अक्सर ही एंगरी रहते हैं.
एक इंटरव्यू में उम्मीदवार से पूछा गया कि हम अपने यहाँ सफाई पर ज़ोर देते हैं आपने अंदर आते वक्त डोर मैट पर अपने जूते साफ़ किए थे ? वह बोला जी हाँ बहुत अच्छी तरह. तभी वे बोले हम अपने यहाँ सच बोलने पर और भी ज्यादा ज़ोर देते हैं बाहर कोई डोर मैट है ही नहीं .
आप इंटरव्यू में घुस तो सकते हैं मगर उसमें से साफ़ बच निकलने और मैदान मारने का गुर भी आना चाहिये. अब अभिमन्यु को ही लें. हो सकता है बाद में पता चले कि इतिहासकार जिसे चक्रव्यूह कहते रहे वह असल में ‘ इंटरव्यूह ‘ था.
nice one sir great...................
ReplyDeletesir kisi badhe neta k interview k kisse b suna dena tha great