ये लो ! और ले लो जी ! एक ही बार में पूरी की पूरी बस के 75 पेसंजरों को 'बिलो फ्लोर ' अर्थात अंडर दी फ्लोर पहुँचाने लो फ्लोर बसें आ गयीं हैं,दिल्ली की बसों के बेड़े में.वो ब्लू लाइन वाले दिन गए की मुश्किल बमुश्किल हफ्ते में एक-दो राह चलतों को ही कुचल कर भवसागर पार करा पातीं थीं.स्वर्ग का टिकट कटा देती थीं. ये आधुनिकतम टेकनीक वाली बसें हैं. लो फ्लोर . पूरी की पूरी बस में आग लगी और सब को वहीं के वहीं निपटा दिया.न शमशान का झगड़ा, न क्रिया-कर्म का खर्चा. हमने कहा न था ये ईको-फ़्रेंडली बसें हैं. ये ब्लू लाइन से आगे की लाइन है.इसका रंग ग्रीन यूँ ही नहीं रखा गया है. ये ग्रीन सिग्नल है.आल लाइन क्लियर . आपने हवाई अड्डों पर ग्रीन चेनल नहीं देखा क्या. हमें तो दिल्ली सरकार का आभार मानना चाहिये कि हमारे लिए वो ग्रीन चेनल ले आए हैं. आइये और बैठे बिठाये जन्नत की सैर कीजिये. महज़ दस रुपये में भवसागर के पार उतरिए. चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो.
आपको अगर याद हो तो पहले डी.टी.सी. का नाम था डी.टी.यू. तब लोगों ने मजाक में इसकी अनियमित सेवा को लेकर इसका नाम रखा था 'डोंट ट्रस्ट अस ' अब डी.टी.सी. का गंभीर अर्थ हो गया है दिल्ली टर्मिनेटर कार्पोरेशन. दरअसल हम लोग, वही जिन्हे आप वोटर कहते हैं. बड़े ही नाशुकरे हैं जी. हरदम मुँह फाड़े रहते हैं. कुछ भी दे दो और चाहिये.. और चाहिये .सरकार ने क्या क्या न किया आपके लिए.क्या क्या न लाई आपके लिए. मिनी बस,ट्रेलर बस,डबल डेकर,लिमिटेड सर्विस, यू स्पेशल, मुद्रिका, तीव्र मुद्रिका, चार्टर्ड, आपकी लिस्ट है कि ख़त्म होने को नहीं आती. अब लेटेस्ट हैं ये लो फ्लोर बसें. लास्ट खबर आने तक छः बसों में आग लग चुकी थी. आपको याद है न रिवाल्वर में भी छः गोलियाँ होती हैं. मतलब सब ठीकठाक प्लान के मुताबिक चल रहा है. बस एक ही नुक्स है की आग बहुत धीरे धीरे लग रही है. धुआँ पहले उठ जाता है. इस से सवारियाँ सचेत हो जाती हैं और बस रुकवा कर धड़ाधड़ उतर जाती हैं. बस इसी का निपटारा कराना है कि उन्हें इतना भी टाइम न मिले.
एक मित्र ने सुझाव दिया है की ये बसें ट्रांसपोर्ट विभाग से फ़ेमिली प्लानिंग विभाग को ट्रान्सफर कर देनी चाहिये. फ़ेमिली को छोटा करने का काम तो हमारी बसें बरसों से कर रही हैं. वैसे सरकार ने बस बनाने वालों को तलब किया है. क्यों जी ये क्या धांधलेबाजी है. आप तो बड़े-बड़े दावे कर रहे थे. ये बसें ये हैं.ये बसें वो हैं. ऐसी हैं .वैसी हैं. ये क्या ? ये तो इतने धीरे धीरे जल रही हैं. इतना धुआँ कर रही हैं की पेसेंजेर तब तक तो उतर कर ये जा वो जा. नहीं नहीं ऐसे नहीं चलेगा.
आपको कुछ करना पड़ेगा. अरे भाई ग्रीन बस है मगर ग्रीन कहाँ ? ये या तो रुक जाती हैं या घिसट घिसट के चलती हैं.ऐसे नहीं चलेगा. भाई ग्रीन रंग है, लो फ्लोर है तो सबके सब पेसेंजरों को एक ही बार एक ही झटके में इस लोक से परलोक ले जाइये. नहीं तो हमें मानना पड़ेगा आपसे तो ब्लू लाइन ही अच्छी थी.
और हम ये क्या सुन रहे हैं. आप भी 'बुश'*(इंजन का एक पुर्जा ) को ही दोष दे रहे हैं.ऐसा लगता है सारी दुनियाँ की बुराइयों का,कमियों का,बीमारियों का जिम्मेदार 'बुश' ही है. अमरीकावाले, अफ़ग़ानिस्तान वाले,चीनवाले, पाक वाले, ईराक वाले यहाँ तक कि कोपेनहेगन वाले भी, सब बुश को ही जिम्मेदार मानते हैं. अब आप भी इस ग्रीन लाइन, लो फ्लोर बस के लिए बुश को ही जिम्मेदार बता रहे हैं. जागो ! दिल्ली वालो जागो ! अब बुश का नहीं ओबामा का जमाना है.
आपको अगर याद हो तो पहले डी.टी.सी. का नाम था डी.टी.यू. तब लोगों ने मजाक में इसकी अनियमित सेवा को लेकर इसका नाम रखा था 'डोंट ट्रस्ट अस ' अब डी.टी.सी. का गंभीर अर्थ हो गया है दिल्ली टर्मिनेटर कार्पोरेशन. दरअसल हम लोग, वही जिन्हे आप वोटर कहते हैं. बड़े ही नाशुकरे हैं जी. हरदम मुँह फाड़े रहते हैं. कुछ भी दे दो और चाहिये.. और चाहिये .सरकार ने क्या क्या न किया आपके लिए.क्या क्या न लाई आपके लिए. मिनी बस,ट्रेलर बस,डबल डेकर,लिमिटेड सर्विस, यू स्पेशल, मुद्रिका, तीव्र मुद्रिका, चार्टर्ड, आपकी लिस्ट है कि ख़त्म होने को नहीं आती. अब लेटेस्ट हैं ये लो फ्लोर बसें. लास्ट खबर आने तक छः बसों में आग लग चुकी थी. आपको याद है न रिवाल्वर में भी छः गोलियाँ होती हैं. मतलब सब ठीकठाक प्लान के मुताबिक चल रहा है. बस एक ही नुक्स है की आग बहुत धीरे धीरे लग रही है. धुआँ पहले उठ जाता है. इस से सवारियाँ सचेत हो जाती हैं और बस रुकवा कर धड़ाधड़ उतर जाती हैं. बस इसी का निपटारा कराना है कि उन्हें इतना भी टाइम न मिले.
एक मित्र ने सुझाव दिया है की ये बसें ट्रांसपोर्ट विभाग से फ़ेमिली प्लानिंग विभाग को ट्रान्सफर कर देनी चाहिये. फ़ेमिली को छोटा करने का काम तो हमारी बसें बरसों से कर रही हैं. वैसे सरकार ने बस बनाने वालों को तलब किया है. क्यों जी ये क्या धांधलेबाजी है. आप तो बड़े-बड़े दावे कर रहे थे. ये बसें ये हैं.ये बसें वो हैं. ऐसी हैं .वैसी हैं. ये क्या ? ये तो इतने धीरे धीरे जल रही हैं. इतना धुआँ कर रही हैं की पेसेंजेर तब तक तो उतर कर ये जा वो जा. नहीं नहीं ऐसे नहीं चलेगा.
आपको कुछ करना पड़ेगा. अरे भाई ग्रीन बस है मगर ग्रीन कहाँ ? ये या तो रुक जाती हैं या घिसट घिसट के चलती हैं.ऐसे नहीं चलेगा. भाई ग्रीन रंग है, लो फ्लोर है तो सबके सब पेसेंजरों को एक ही बार एक ही झटके में इस लोक से परलोक ले जाइये. नहीं तो हमें मानना पड़ेगा आपसे तो ब्लू लाइन ही अच्छी थी.
और हम ये क्या सुन रहे हैं. आप भी 'बुश'*(इंजन का एक पुर्जा ) को ही दोष दे रहे हैं.ऐसा लगता है सारी दुनियाँ की बुराइयों का,कमियों का,बीमारियों का जिम्मेदार 'बुश' ही है. अमरीकावाले, अफ़ग़ानिस्तान वाले,चीनवाले, पाक वाले, ईराक वाले यहाँ तक कि कोपेनहेगन वाले भी, सब बुश को ही जिम्मेदार मानते हैं. अब आप भी इस ग्रीन लाइन, लो फ्लोर बस के लिए बुश को ही जिम्मेदार बता रहे हैं. जागो ! दिल्ली वालो जागो ! अब बुश का नहीं ओबामा का जमाना है.
Ek achha Vyang Delhi Ki Bason Ka Bas Ek Family Planning ka Achha Tarika Khoja Hai AApane
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