दरमियाँ मेरे तुम्हारे
दुनियां भर का दस्तूर था
में तेरे साथ रह कर भी
तुझ से बहुत दूर था
दौलत-ए-वफ़ा में यूँ तो
कमतर न थे हम
पर जिस बस्ती में दिल आया वहां अभी
सोने के सिक्कों का ही चलन मशहूर था
तुम इतने मेहरबाँ रहे मुझ पर
सच कहता हूँ
खुदा से कहीं ज्यादा
मैं तेरा मशकूर था
सब तेरे झूठ को भी
सच मानते हैं इस शहर में
शायद तुझ में खुदा का
ऐसा ही कुछ नूर था
गर में जानता मेरे मरने से
होगी तुझे मसर्रत हासिल
यकीन जान यह मरना मुझे
बाखुशी मंजूर था
किस की क्या ख़ता थी
अब यह चर्चा बेमानी है
मैं तो वसीयत में लिख चला हूँ
फ़क़त मेरा कसूर था
.........
वो आये ही जाते हैं,
ऐ उम्मीद न जा
यूँ छोड़ कर, ठहर
अभी कुछ देर और.
शाम का वादा था
रात जाने को है
वो आते ही होंगे, ऐ शमा जलो मेरे साथ
अभी कुछ देर और.
मैं तेरी जुदाई के
ख्याल से हूँ अश्कबार
रो लेने दो
अभी कुछ देर और.
एक उम्र के इंतज़ार के बाद आया है
न जाने फिर कब आना हो तेरा
ऐ सावन बरस
अभी कुछ देर और.
खामोश,गुमसुम देख
मुहब्बत का गुमां होता है
यूँ ही रहो खफा
अभी कुछ देर और.
जुदाई की शब है,फिर मिले न मिले
जज्ब कर लूँ हर अदा,याद कर लूँ हर वाक़या
बैठी रहो मेरे पहलू में
अभी कुछ देर और.
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