Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Friday, January 15, 2010

पंखुरियां ...

काली घटाओ ....
उड़ उड़ के जाओ ...
पी हैं कहाँ
उनको यहाँ. .
लेकर के आओ. .
काली घटाओ . .
मेघा तुम रहने दो अभी तो
पी को ज़रा आ लेने दो अभी तो
फिर घुमड़ घुमड़ के आओ
काली घटाओ ..
सनम को आ लेने दो
नयनों से रूप रस पी लेने दो
फिर तुम सखी मन भर के गाओ
काली घटाओ ..
नयनों के रस्ते करने दो बातें
पी के बिना तुम क्या जानो
कैसे गुजारीं मैंने वो रातें
अब पी तक मेरा संदेसा पहुँचाओ
काली घटाओ ..
उड़ उड़ के जाओ ..
................
आज रात की आँखें  नम हैं,कोई नयी बात नहीं 
जो रो के ना गुजरे, अभी आई ऐसी रात नहीं 
हम सब को रोना पड़ता है
हँसने के लिए भी नैनों को भिगोना पड़ता है
पेड़ रोता है पत्ते ना देख शाखों में
चाँद ठंडा है ना, आंसू जमे हैं उसकी आँखों में
ये लू नहीं रवि के आहें हैं
खुश ना हो ओ यूँ रिमझिम फुहारों में
ये बादल रो रहा है बरसात नहीं
आज की रात की आँखें  नम हैं
कोई नयी बात नहीं .
.......
मेरे आंसू ही बहुत हैं
जग को डुबोने को
ऐ बादल तू क्यों रोता है
हरेक के गम में तेरा रोना वाजिब नहीं
तुम मेरे साथ मत चलो
एक सफ़र में
दो मंजिलों का होना
वाजिब नहीं
जलने को मेरा दिल ही बहुत है
इन चिरागों को गुल कर दो
एक रात में दो दो का
जलना वाजिब नहीं

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