Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Sunday, January 24, 2010

आपके लिए

देख के मुझे उन्होने नज़रें झुका लीं
मगर  हमसे मुँह मोड़ा न गया
हम थे तैयार दुनियाँ तलक छोडने को

हाय उनकी शर्म उनसे ये समाज छोड़ा न गया
उनके एक इशारे पर तोड़ दी मैंने

मज़बूत रिश्तों की बेड़ियाँ

हाय उनकी नजाकत को क्या कहूँ

उनसे एक रिवाज तोड़ा न गया
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दिन ढल गया है, रात से क्या कहें

ज़माना बदल गया है, आप से क्या कहें

लाख चाहा है हंसना मैंने आपके जाने के बाद

अब आँसू छलक गया है तो आँख से क्या कहें.
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आह भर तो सकता हूँ,
मगर दर्द को दबाये जा रहा हूँ

साथ रहना कोई रिवायत तो नहीं,

फिर भी निभाये जा रहा हूँ

लहू जिगर का समझ के मय,
हर महफिल में पीए जा रहा हूँ

यूँ हसीन और भी हैं ज़माने में,

न जाने क्यूँ मैं तेरा ही नाम लिए जा रहा हूँ

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दौड़ने से पहले चलना तो सीख लो *

चलने से पहले गिरना तो सीख लो

मैंने देखी हैं ज़िंदा लाशें

जीने से पहले मरना तो सीख लो



उनका कोई तत्व नहीं जीने में *
 बोझ हैं धरती के सीने में
जो श्रम का मूल्य नहीं समझे

न जाने क्या शक्ति है पसीने में



किसी ने युद्ध किया किसी ने संधि *

किसी ने कहा किसी भी प्रकार से जीतो

मगर मैं कहता हूँ

शत्रु को अपने उपकार से जीतो

( * नवभारत टाइम्स 31/3/1974 )

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तेरे बगैर जीवन ?

केवल दिनों का काटना भर है

ले रहा हूँ मैं हर साँस

जैसे तेरी धरोहर है.

मैं तो बिका हूँ

प्रेमनगरी में बेमोल

प्रिय एक बार आके कर जाओ

मेरे प्राणों का मोल .

या कह दो वो भ्रम था

भावनाओं का बंधन था

मगर मैंने महसूस किया है

छू के देखा है

मैं कैसे कह दूँ वो सब स्वप्न था.
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मृत्यु कामिनी है यदि बांध लो उसे प्रणय-पाश में

मृत्यु भामिनी है यदि तो तिलक करा लो ललाट में

मृत्यु मदिरा है यदि तो पी लो बूंद प्रत्येक

मृत्यु विष है यदि तो देखना रह न जाए बूंद कोई एक

मृत्यु वृक्ष  है यदि लिपट जाओ उस से लता की भाँति

मृत्यु भ्रम है यदि तो अपना लो ये सुंदर भ्रांति

मृत्यु किसी सुंदरी का मुख है यदि

तत्क्षण ही ढूंढ लो मुक्ति उसके चुंबन में

मृत्यु कमनीय काया है यदि

स्वयं लिपट जाओ उसके आलिंगन में

ओ राही क्यों भटक रहा, ये जग मोह का बंधन है
क्यों भूल रहा जानकर जो सत्य है

मृत्यु अपने आप में एक जीवन है .
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तुम आए कि अंधे को आँख,पतझड़ पे वसंत

वीराने में बहार और ज़िंदगी आ गयी पर्दे में

तुम आयीं कि अपढ़ को ज्ञान,अंधकार में उजाला

घर में खुशी और जान आ गाय मुर्दे में.

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एक आँसू हमारा था जो आँख से संभला नहीं

एक आँसू तुम्हारा था जो आँख से निकला नहीं

डाल दी है तोहमत मैंने मुकद्दर कि पेशानी पे

हक़ीक़त ये है मुझे तुमसे कोई गिला नहीं

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प्रिय भूल न जाना वे क्षण

किए थे जब हरी दूब पर बैठ हमने कुछ प्रण

पूछेगा प्रश्न बीता हुआ कल,आने वाले कल से.

मांगेगी उत्तर हर लहर, उठते गिरते झरने कि कलकल से

क्या दोगे तुम तब ? इसलिये कहता हूँ

बिसरा न देना मेरा नाम अपने स्मृति पटल से.

रही एक ही जान, चाहे रहे हों दो तन

प्रिय भूल न जाना ..

कोई आश्चर्य नहीं उन स्थितियों में

हम तुम दोनों बदल जाएँ अपनी परिस्थितियों में

संभव है तुम मग्न हो जाओ विजयोल्लास में

या दूरी बन जाए बैरिन हमारे मिलाप में

लेकिन बैठे होगे जब तुम अवकाश में

मुझे विश्वास है मेरी याद मेघ बनके घिर आएगी

तुम्हारे हृदयाकाश में

हाय कैसे कट पायेंगे वे दिन

प्रिय भूल न जाना ...

माना भौतिकता के दायरे में ज़िंदगी बंधी है

किन्तु सुना है मैंने ये भी हृदय से हृदय कि डोर बंधी है

होने दो अपने हृदय पर मेरी स्मृति का हिमपात

रुको! मत हटाओ मेरी यादों के हिमकण

क्या तुम भूल गए वे क्षण

किए थे जब हरी दूब पर बैठ हमने कुछ प्रण

कि प्रिय भूल न जाना ...

(कॉलेज पत्रिका 1976 )
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हृदय दर्पण के हर कण-कण पर

प्रतिबिंब है तुम्हारा.
मेरी हर साँस पर

प्रिय ऋण है तुम्हारा.

मैं कौन ? कहाँ ?क्या अस्तित्व मेरा
सुना है जग को गति देता है

संकेत तुम्हारा.
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चिंगारी दबेगी नहीं ये माना मैंने

लेकिन शोलों को यूँ हवा देना भी ठीक नहीं.
दर्द से लेते हैं जो काम इलाज़ का

उनको यूँ दवा देना भी ठीक नहीं.
जो तुम पर जान लुटाना चाहते हैं

उनको लंबी उम्र की दुआ देना भी ठीक नहीं.
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बिखरे हुए थे यूँ तो कई आँचल हवा में

मैंने वो थाम लिया जो तेरा दामन था.
सपने क्योंकि टूट जाते हैं

इसलिये अब आदमी लौट आता है

सपनों को विदा कर वहीं, जहाँ से वह चला था.

लेकिन मैं उसके पीछे हो लिया जो तेरा स्वप्न था.

खड़े हैं बहुत से प्रश्न और समस्याएँ

हाथ बाँधे,दम साधे, पहले मैं.. पहले मैं चिल्लाते

लेकिन मैंने वो उत्तर ढूढ़े जिन में तेरा प्रश्न था.

किसी में था सघन वन,किसी में था मधुर उपवन

कहीं धन था,कहीं तन,कहीं प्रताड़ना,कहीं आलिंगन

लेकिन मैंने वो अपना लिया जो दुनियाँ का चलन था .

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मेरी कसम है तुमको, जज़बात को सुर मत देना

मेरे भटकते प्यार को, तुम अपना दिल मत देना

मंज़िल पर पहुँच कर लोग पूछेंगे

तुमसे तुम्हारी कामयाबी का राज़

उस मुकाम पे तुम मेरा नाम मत लेना

अहमियत मंज़िल की है,राह की,राही की है

हमराही की नहीं.

इसलिये कहता हूँ तुम मुझे अहमियत मत देना

मेरी कसम है तुमको,जज़बात को तुम सुर मत देना .
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मेरा दर्द मुझे जीने नहीं देगा

तेरी याद मुझे मरने नहीं देगी

ज़माना बड़ा ज़ालिम है ए दोस्त

आज अगर हम नहीं मिले

कल ये दुनियाँ हमे मिलने नहीं देगी
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