Ravi ki duniya

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Sunday, January 17, 2010

हाय कार्ला ब्रूनी नहीं आई


मदाम ब्रूनी
बांजूर
मेरे देश में अब पड़ गयी होगी दिलजलों के कलेजे में ठंडक. शोर मचा-मचा के आसमां सर पे उठा रखा था तुम आओगी तो क्या करोगी.क्या नहीं करोगी प्रोटोकॉल का क्या होगा अब चाटते रहो अपने प्रोटोकॉल को. तुमने सही  किया जो कह दिया माई फुट. ये अभागे भूल गये कि  ये कामसूत्र, खजुराहो के देश के लाल हैं. बस इनसे ना सहा गया. हमारे रहते कोई खुश कैसे है ?अभी बहुत साल नहीं हुए हैं जब हमारे रनिवासों में एक एक राजा  के पास सैकड़ों रानियाँ रहती थी. आज चले है आपके पीछे. मुझे तो ऐसा लग रहा है कि  हमारे देश में जहाँ 'अतिथि देवो भव' की सनातन परम्परा रही है . वहां ऐसा उत्पात .. तौबा-तौबा. अपनी और अपने देश के कर्णधारों की करतूतें नहीं दिखती  हैं. जो एक आप जैसी अबला गरीब के पीछे पड़ गये. इन्हें कोई काम है या नहीं. परदेसी परदेसी जाना नहीं वाले देश में परदेसी परदेसी आना नहीं हो रहा है .
आप आतीं तो कैसी रौनक रहती. कितने फोटोग्राफर कितने गासिप कालम वालों  को काम मिलता ? हत्या ..बलात्कार ..लूटमार.. आगज़नी.. के अलावा समाचारपत्रों में हमें कुछ देखने पढने  का हक है कि  नहीं . कोई सुखद तस्वीर ना दिख जाये हमें. बस इसी जुगाड़ में रहते हैं.
मुझे सच्ची बताऊँ तो बड़ा दुःख हो रहा है. तुम आती तो मेरा प्लान था कि  दिल्ली या आगरा जाकर तुमसे मिल आता . मिल ना पाता तो दूर से देख ही आता कि  एक राष्ट्रपति की प्रेमिका कैसी होती है और कुछ नहीं तो टी . वी. पर ही देख-देख खुश हो लेता. मेरा ऑफिस से कैजुअल  लीव  लेने का प्लान भी था जैसा की हम लोग भारत-पाक  क्रिकेट के  फ़ाइनल  पर लेते हैं .
मगर नहीं  सब सपने अधूरे  रह गये. दरअसल हम सब-कुछ दबे-छुपे करने के कायल हैं. अब आपको पता  लगा जिसे आप यौन विज्ञान कहते हैं उसे हम गुप्त ज्ञान क्यों कहते हैं हम प्रकृति से ही कुड़ने वाले ईर्ष्यालु रहे हैं फिर चाहे वो दोस्त की तरक्की हो , रिश्तेदार की प्रगति हो. पडोसी दम्पति हो या उसकी सम्पति हो .फिर हम ये कैसे सहन कर सकते हैं की हमारे देश में बाहर -गाँव का राष्ट्रपति यूँ खुल्लम-खुल्ला अपनी प्रेमिका के साथ गलबहियाँ करे. अपने नहीं दीखते जो विक्टोरया मेमोरिअल हो चाहे ला गार्डेन ,इंडिया गेट हो या मरीन ड्राईव . सुबह शाम पुलिस  को गश्त लगानी पड़ती है. 

भई हद ही हो गयी. आपने  सूझ-बूझ से काम लिया जो साफ़ साफ़ झिड़क दिया . मैं वहाँ जाकर क्या करुँगी जहाँ मेरा सम्मान नहीं. इसे कहते हैं आत्म-सम्मान क्या कोई हिन्दुस्तानी प्रेमिका यदि उसे फ्रांस जाने का अवसर मिल रहा होता ऐसा साहस दिखा सकती थी. कदापि नहीं. बल्कि वो तो उल्टा ये कह के धमका देती की फ्रांस नहीं ले जा रहे हो तो भांडा फोडूं क्या? बुलाऊँ प्रेस कान्फरेंस . चैनल वाले तो आजकल ऐसी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए ना जाने कहाँ कहाँ चप्पल फटकारते घूमते रहते हैं . कुछ नहीं मिलता तो सैफ के टेटू पर ही दिन भर का प्रोग्राम चला देते हैं ये फर्क है फ्रेंच प्रेमिका और इंडियन प्रेमिका में.
तुमने ठीक किया जो तुम यहाँ नहीं आ रही हो. तुम्हें पता  नहीं तुम्हारे आने से बहुतों को तो ये खतरा था कि हमारी संस्कृति हमारे संस्कारों का क्या होगा. जैसे कोई कसर रह गयी है क्या .
हमारी युवा पीढी का क्या होगा. वो तो युवाओं  को खुद भी नहीं पता.
और सबसे बड़ी बात हमारे नेताओं का क्या होगा. वैसे में बताऊँ सबके पास दो चार प्रेमिकाएं होती हैं . दिल्ली में क्या, चुनाव क्षेत्र  में क्या .आये दिन प्रेमिकाएं पकड़ी भी जाती हैं.
सच तो यह है हम दिल से हमेशा बूढ़े  ही रहते हैं. प्रेम हमारे देश में एक गिल्ट का नाम है . हमें मार मार कर सिखाया जाता है कि प्रेम केवल ईश्वर से करना है ना कि ईश्वर के बन्दे-बंदियों से .

मदाम मेरे देश में प्रेम हमेशा पाप है और भले हम पुराने पापी सही मगर हमेशा दूध के धुले दिखना चाहते हैं. अतः हमारा  सुधरना कठिन है. यद्दपि लिव इन , कॉल सेंटर ग्लोबलऐजेशन और पेज थ्री के चलते  कुछ कुछ सुधरने कि आशा बंधी है.
टेक केयर

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