कितने दिन तेरे रूप ने मुझे भरमाया था
तेरे मधुर प्रेमालाप ने मुझे जगाया था
मिल गयी अब मंजिल की राह मुझे
प्रिय तुमने बरसों प्रीतनगर में भटकाया था
जान गया मैं वो तू नहीं,तेरा स्वप्न था
जिसे देख मैं भटक गया था
अब हुआ बोध मुझे वो तू नहीं
तेरे सौन्दर्य प्रेम का साया था
जिसने मुझे अविरल मृग सम घुमाया था
कितने दिन तेरे ..
बाधा है मन के बंधन में
बाधा है प्राणों के मिलन में
तुम्हारा ये रूप का लावन्य का संसार
मिलेंगे हम लांघ के ये भ्रमित व्यापार
तेरे रूप ने मुझे ठग लिया
में तो दिल से दिल का सौदा करने आया था
कितने दिन ..
छटपटाता है मन मयूर बन तन का कैदी
विचरण करने दो मन को ज्यों
अनजाने पथ का बटोही
उतर गया कितना गहरा मैं तेरे मोह बंधन में
किन्तु रहे तुम बेखबर बन निर्मोही
उफ़ इस प्रीत की पीर ने मुझ से
क्या क्या ना कराया था
किन्तु भान हो गया अब मुझे
अपनों को छोड़ जिसे अपनाया था
मैं अब भी उसके लिए कितना पराया था
कितने दिन तेरे रूप ने मुझे भरमाया था
तेरे मधुर प्रेमालाप ने मुझे जगाया था
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