किसी भी राह की मंजिल नहीं यहाँ
किस पथ पर अपने पाँव बढाऊँ
यहाँ का चेतन भी जड़ हो गया है
अपना दर्द सुनाने किसे जगाऊँ
कोई नहीं आराध्य किसके आगे
अपने को छोटा बताऊँ
कहा बड़ों ने सन्मार्ग पर मंजिल मिलेगी
किन्तु पाया मैंने कु-पथ पर लक्ष्य को समीप
जिसको भी सुनाई मैंने अपने व्यथा
सामने मेरे दुःख जता बाद मैं हँसा
इसलिए मैं जड़ से कहता हूँ
अपने आत्मकथा
वो जो जगत मैं है आराध्य
मैं नहीं उसकी भक्ति को बाध्य
कैसे मैं विश्वास करूँ
मैं साधन हूँ और वो साध्य
उनके आदर्श नहीं मेरे अनुकरण के लिए
उनकी भावना नहीं मेरे वरण के लिए
मेरे पास स्थान नहीं
उनके विचारों की शरण के लिए
फिर किसकी करूँ निंदा
किसकी महिमा गाऊँ
किसी भी राह की मंजिल नहीं यहाँ
किस पथ पर अपने पाऊँ बढाऊँ
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