Ravi ki duniya

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Tuesday, January 12, 2010

वेतन आयो-गयो



वेतन आयोग ने अपनी रिपोर्ट दे दी है। मुझे क्योंकि वेतन आयोग का काम नहीं दिया गया था। अतः मैंने अपनी रिपोर्ट अलग से बनाई है। सरकार को तो बाद में भी दे दूँगा, आपके लिए प्रस्तुत है उसके कुछ खास अंश। आखिर आपको भी तो खुश होने का हक है। पुराने लोग इस बात की तस्दीक करेंगे कि अभी साठ साल पहले तक वेतन चाहे कितना ही कम क्यों न था लोग बड़े चैन से रहते थे। घर में बरकत ही बरकत थी। आज सभी अपने को आर्थिक रूप से पिछड़ा समझने लगे है। हम तो गरीबी हटाने निकले थे यहाँ पूरा का पूरा मुलुक ही गरीब हो गया। पैदल वाला साइकिल वाले से, साइकिल वाला स्कूटर वाले से, टी.वी. वाला वी.सी. आर. वाले से। यहाँ तक कि कार वाले भी एक दूसरे से गरीब हो गए। छोटी कार वाले लम्बी कार वालों से।
हमारी आर्थिक नीति उदार होते होते आवारा हो गई। अमीरों की गोद में ही जा बैठी है। जमीन बेचने के बाद हम आकाश भी खा जाना चाहते हैं। अंत कहाँ होगा किसी को पता नहीं। आजकल हम छठे वेतन आयोग के जमाने में हैं, एक मित्र पूछ रहे थे कि वेतन आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत ही क्यों होते हैं। अरे भई इसमें पूछने वाली क्या बात हो गई। सेवारत को तो वेतन मिलता ही है यह तो सेवानिवृत ही हैं जो वेतन से महरूम रहते हैं। कुछ लोग अ‍ॅब्जेक्शन ले रहे थे कि वेतन आयोग में आई.ए.एस. को क्यों बिठा दिया वो बाकी सबका भट्‌ठा बिठा देगा। क्यों भई तुम्हें क्या परेशानी है। नहीं तो तुम्हें बिठा दे क्या? आई.ए.एस के अनेक अर्थ व प्रयोग हैं। कभी मसूरी जाकर देखिए तो पता चले। कितनी किताबें, नोट्‌स, कोचिंग, प्रलिमनरी, मेन, इंटरव्यू और मेडिकल टेस्ट की दुरुह सीढीयां पार करते हैं तब कहीं जाकर यह खुल जा सिमसिम' वाला मंत्र मिलता है। या यूं कह लें खुद ही आई एम सिमसिम हो जाते हैं। एक ये दुनिया वाले हैं एक आध करोड़ बेचारे दहेज में भी ले लें तो ऐसे बावेला मचाते हैं जैसे इनकी जेब काट ली हो. देने वाला दे रहा है, लेने वाला ले रहा है। तू कौन काजी कि मुल्ला।


किसी कम्पनी में इतनी औद्योगिक अशांति थी कि डाइरेक्टर्स ने फैसला लिया कि कर्मचारियों को बिना काम कराये ही वेतन देना चीप पडेगा. इसी से बहुत बचत होगी बिजली, ट्रांस्पोर्ट, केन्टीन सब्सिडी आदि आदि। मीटिंग बुलाकर घोषणा की गई कि आप माह के अन्त में आकर बस अपना वेतन ले जाया करें। तभी यूनियन के नेताजी उठ खड़े हुए यह वेतन लेने हमें हर महीने आना पड़ेगा क्या'?
बात वेतन आयोग की हो रही थी। वेतन आयोग वेतन के अलावा अन्य अनेक सुविधाओं और सेवा शर्तों में संशोधन/सुधार की सरकार को सिफारिश करता है। वेतन आयोग को महँगाई और बदलते माहौल को ध्यान में रखकर यह सब करना होता है। जैसा आजकल के दफ्तरों का माहौल है उसके अनुसार आगे आने वाले समय में सभी कर्मचारी कार एडवांस तथा बंगला एडवांस के पात्र होंगे। उन्हें पान, चाय, बीड़ी सिगरेट, खैनी और पान मसाला एलांउस मिलेगा। भला इनके बिना ज़िंदगी भी कोई जिन्दगी है। सभी निःशुल्क विमान यात्रा के पात्र होंगे। उन्हें दो सरकारी बंगले जमीन की उपलब्धता के आधार पर आवंटित किए जाएँगे। एक शहर में दूसरा गाँव में। जो शहर में रहने वाले हैं (वैसे भी तब गाँव रह ही कहाँ जाएँगे) उन्हें विकल्प रहेगा कि वो चाहें तो समुद्र तट या पहाड़ पर एक बंगला अलग से ले सकेंगे। वे बंगले फुली फर्निश्ड' होंगे ताकि पास पड़ोस से ईर्ष्याजनित लड़ाई न हो। यदि बंगला उपलब्ध नहीं होगा तो फ्लैट मिलेंगे, मल्टी स्टोरी दो सौ तीन सौ मंजिल के बनाए जाया करेंगे। दफ्तरों में जूस तथा जूस में डालने को शराब भी मिला करेगी। प्रत्येक को दो कारें मिलेगी एक अपने लिए, एक पत्नी के लिए। इन दो कारों में से एक विदेशी होगी. लंच निशुल्क वेज तथा नॉन वेज. छुट्टी वाले दिन फैमिली पैक लंच की फ्री होम डिलीवरी. व्रत के दिनों में कार्यालय फल व प्रसाद आदि का प्रबंध करेगा.
कार्यालय में म्यूजिक रूम, टी.वी. रूम, वीडियो रूम, कार्ड (ताश) रूम आदि होंगे। वर्ष में दो बार कर्मचारी विदेश पेड हॉलीडे पर जा सकेंगे. मेडिकल चिकित्सा के लिये वे जितना पैसा उन्हें मिलेगा इससे वे नकली बिल बनवाने के झंझट से बचेंगे। कार्यालयों में से घड़ी हटा दी जाएँगी क्योंकि उनकी कोई उपयोगिता नहीं है। कार्यालय में समय की कोई बन्दिश नहीं रहेगी, आपका जब दिल करे आएं अन्यथा न आएं। छुट्‌टी के लिए किसी को एप्लाई नहीं करना पड़ेगा। क्या फायदा पहले एप्लीकेशन लिखो, स्वीकृत कराओ और फिर उसे रिकार्ड से गायब कराओ। इससे देश के कितने मैन आवर्स' व्यर्थ जाते हैं। अतः आप खुद ही अपनी छुट्‌टी स्वीकृत कर सकेंगे। इससे बड़ा फायदा यह है, स्टेशनरी बचेगी, रिकार्ड रूम की बचत तथा बॉस से सम्बन्ध बिगड़ेंगे नहीं और न ही आपको मामा, चाचा, ताई, नानाजी को बीमार करना पड़ेगा। विशेष प्रकार के कलैण्डर बनाए जाएँगे जिसमें केवल छुटि्‌टयाँ दर्शाई जाएँगी व शनिवार रविवार को सफिक्स/प्रीफिक्स करने का खुलासा दिया जाएगा। इससे बर्ड वाचिंग की तरह क्लैण्डर वाचिंग की हॉबी रखने वाले कर्मचारियों को सुविधा रहेगी।
गोपनीय रिपोर्ट प्रणाली पूर्णतः समाप्त कर दी जाएगी। क्योकि न तो यह गोपनीय है न ठीक रिपोर्ट ही। किसी की भी सी.आर. वैसे भी खराब होते नहीं देखी। इससे पुनः श्रम की बचत, स्टेशनरी की बचत, रिकार्ड रूम की बचत तथा बॉस से डरने या उसकी खुशामद में ऊर्जा नष्ट करने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी और आप एकाग्रचित्त होकर काम (यदि करना चाहें तो) कर सकेंगे। आपकी सेवानिवृत्त् की कोई आयु नहीं होगी। जब तक आप चाहें आप नौकरी में रह सकेंगे (हाथ पैर चले न चलें, हूँ केयर्स) विदेशों में न्यायाधीशों पर यह नियम बहुत पहले से है। हिन्दुस्तानी रियासती रेलवे में भी यह कानून था मगर रियासतें खत्म हो गई तो ये शाही ठाठ भी चला गया। आप चाहेंगे तो आपको सेवानिवृत्त् पर आपकी जगह दो बच्चों को नौकरी दे दी जाएगी। भी यह सुविधा एक बच्चे को ही उपलब्ध है वो भी कर्मचारी की मृत्यु के बाद। इससे भर्ती दफ्तर, परीक्षा, इंटरव्यू का ,खर्चा, सिफारिश कराना, रिश्वत आदि से छुटकारा मिलेगा। भ्रष्टाचार के खात्में में भी इससे मदद मिलेगी। जो पैसे देकर आता है वह पहले दिन से ही चक्रवृद्घि ब्याज सहित वसूली भी शुरू कर देता है।
दफ्तरों से हाजिरी के रजिस्टर हटा लिए जाएँगे। अभी भी फर्जीवाड़ा है। मेरे दफ्तर में जब लेट आने वालों के क्रॉस लगना शुरू हुए तो भाई बहिनों ने रातों रात अपने साइन ही क्रॉस के माफिक बना लिये दफ्तरों में राजनीति पर परिचर्चा सेमीनार हुआ करेंगे. कर्मचारियों को चुनाव लडने आदि की पूरी छूट होगी. वे खुल्लमखुल्ला पॉलिटिक्स कर सकेंगे. रोकते हैं तो रुकते तो वैसे भी नहीं हैं. आस पास के थियेटर वाले अपनी अपनी बुकिंग विंडो दफ्तर में खोल सकेंगे. ताकि कर्मचारियों अपना मनोरंजन कर सकें. इच्छुक नव युवक व नव युवतियों के लिये पीछे की सीटों का विशेष प्रबंध रहेगा. महिलाओं के लिये कार्यालयों में विशेष निटिंग रूम, रैस्ट रूम कॉन्फरेंस रूम रहेंगे. चाट, गोल गप्पे तथा साड़ीयों के काउंटर खोले जायेंगे. ऑफिस में सह कर्मियों के साथ पारस्परिक मधुर सम्बंधों को बढाने की दिशा में विवाह सम्बंधों को प्रोत्साहित किया जायेगा, ऐसे जोड़ों को एक एक प्रोमोशन दिया जायेगा. इससे दहेज तथा शादी ब्याह में होने वाली फिजूलखर्ची को रोका जा सकेगा। अन्तर्विभागीय, अतर्राज्यीय व अतर्जातीय वैवाहिक सम्बन्ध बनेंगे जो देश को एकता के सूत्र में पिरोने में योगदान देंगे। महिलाओं का विशेष ख्याल रखते हुए कमीशन इस की सिफारिश करता है कि तीन माह के प्रसूति अवकाश को बढ़ाकर तीन वर्ष कर दिया जाए। अभी भी वो बढ़ाते बढ़ाते साल से ऊपर तो कर ही लेती हैं। यदि फिर भी लगे कि बच्चा मैनेजेबल' नहीं है तो वे छुट्‌टी और भी बढ़ा सकती है। कमीशन जानता है कि सरकारी कर्मचारियों के बच्चे वैसे भी मैनेजेबल' नहीं होते हैं।


सिर्फ तीन तरह के पद रखे जाएँगे। क्लास फोर जिसे ग्रुप डी कहते हैं या सपोर्ट स्टाफ कहते हैं वो सभी जूनिअर ऑफीसर कहलाएंगे। ग्रुप सी' वाले ऑफिसर कहलाएंगे और सभी अधिकारी सीनियर ऑफिसर कहलाएंगे। चाहें तो सारे ग्रुप डी' असिस्टेंट जनरल मैंनेजर, सारे ग्रुप सी' डिप्टी जनरल मैनेजर, और सारे अफसर जनरल मैनेजर भी कहे जा सकते हैं। वर्तमान जनरल मैनेजर अपना अपना सोच लें, आजकल तो बढ़िया बढ़िया डेजिगनेशन चल निकले हैं। कन्ट्री हैड, वाइस प्रेसिडेंट आदि।


कर्मचारियों को घर के लिए कागज, पैंसिल, रबर, स्टैपलर, बॉलपेन अलग से मिलेंगे ताकि इन्हें वे निडर हो कर घर ले जा सकें ना कि छुपा कर वे जितने मर्ज़ी फोन लोकल या बाहर कार सकें इसके लिए पात्रता के नियम स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाए जाएँगे। इससे कर्मचारियों में स्वाभिमान की भावना का विकास होगा। उन्हें फोन के लिए किसी का अहसान नहीं लेना पड़ेगा। प्रेमी प्रेमिका के लिए या तो अलग फ़ोन रखें जाएँगे अथवा उनके फोन आने पर तुरन्त अन्य सभी लोग कमरे से बाहर चले जाएँगे ताकि वे तसल्ली से गुटरगूँ कर सकें। इससे बेचारों को कोडवर्ड में बात नहीं करनी पड़ेगी। अभी तो आई लव यू' तक के लिए उन्हें वन फोर थ्री' कहना पड़ता है। वैकल्पिक तौर पर उन्हें मोबाइल भी दिए जा सकते हैं। आखिर तभी तो दुनिया मुठ्‌ठी में आएगी।

दफ्तरों से विजिलेंस विभाग समाप्त कर दिया जाएगा। पिछला तजुर्बा यह बताता है कि इससे बहुत बचत है। एक इलाके से थाना हटते ही चोरी, लूटमार, जेबकतरी रुक गई। कारण कि हिस्सा बाँटने और बचाने को पुलिस तो रही नहीं, नागरिक और अधिक सतर्क हो गए। परिणामतः चोरों और जेबकतरों का तो कॉन्फीडेंस ही जवाब दे गया। नकल विरोधी कानून हटा देने से अब यह भी विचार है कि पदों के लिए शैक्षिक योग्यता का कोई मापदण्ड न रखा जाए। यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। अब आप स्कूल/कॉलेज से एक बार डिग्री खरीद कर ला ही रहे हैं तो क्यों परीक्षा/साक्षात्कार लेकर डुप्लीकेसी' की जाए। इसी प्रकार शपथ लेना कि मैं निष्ठापूर्वक कार्य करूँगा या फिर चरित्र प्रमाणपत्र आदि का सिस्टम' खतम किया जाए कारण कि जो चीज प्रासंगिक ही नहीं उसे बनाए रखने से क्या लाभ।
अन्त में दो बातें रह गई हैं पहली कि इस रपट में काम करने का कोई जिक्र नहीं है दूसरे वेतन पर तो बाद आयेंगे उपरोक्त भत्तों और सुविधाओं के लिए ही धन कहाँ से आएगा। कमीशन ने इस पर काफी सोचा विचारा है तथा इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि दोनों ही बातें कमीशन के क्षेत्राधिकार में नहीं है अतः सरकार चाहे तो इसके लिए अलग कमीशन बिठा सकती है।













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