Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Friday, January 8, 2010

सुनहरी धूप की छाँव तले

तुम्हें तो मेरे बिना जीने की आदत पड़ जाएगी
देखें मेरी बेखुदी मुझे कहाँ ले जाएगी
मौसम आयें जाएँ बदला करें,किसे परवाह
क्या बहार मुझे देगी,खिंजा मेरा क्या ले जाएगी
..........
भीड़ में एक आदमी आज फिर
जाना-पहचाना सा लगा
बातें करता था वो अमन-ओ-ईमान की
कुछ कुछ दीवाना सा लगा
........
तेरे शहर का ये रिवाज खूब है
जितना बड़ा सितमगर उतना ही महबूब है
एक ज़माना हुआ तुमको गुलशन से गुजरे
फूलों पे आज तक तेरा रंग तेरा सुरूर है
फिजा में तेरी खुशबू रची-बसी है
क़ायनात और तुझ में कुछ गुफ़्तगू ज़रूर है
.......
अंधों के शहर में आईने बेचने निकले
यार तुम भी मेरी तरह दीवाने निकले
किस किस के पत्थर का जवाब दोगे तुम
महबूब की बस्ती में सभी तो अपने निकले
वो हँस कर क्या मिले तमाम शहर में चर्चा है
तेरी एक मुस्कान के मायने कितने निकले
ऐ दोस्त कैसे होते हैं वो लोग जिनके सपने सच होते हैं
एक हम हैं हमारे तो सच भी सपने निकले

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