नेताजी ने अपने दोनों तीनों नेत्र खोले तथा ठान लिया कि आज वो देश की फ़र्स्ट हैंड हालत जान कर ही रहेंगे. इस के लिए उन्होने रिमोट से अपना प्लाजमा टी.वी. खोला और देखा कि 'बालिका वधू' नामक सीरियल में छोटी बच्ची पर अत्याचार हो रहा है उन्होने एक बार फिर ठान लिया कि भले वे बाल-विवाह नहीं रुकवा पाये,भले ही वे बाल-वेश्यावृति नहीं रुकवा पाये,भले ही बाल भिखारी या ढाबे के छोटू, तम्बी, रामू को नहीं बचा पाये मगर इस बालिका वधू को तो बचा ही लेंगे. और कुछ भी बस नहीं चला तो बालिका वधू का प्रसारण तो रुकवा ही देंगे. उन्होने देखा कि टी.वी. के एक अन्य चेनल पर जय श्री कृष्ण के बालकृष्ण लीला कर रहे हैं. बस नेता जी भड़क गए. लोगो को पीने को पानी नहीं और ये बालक दही-मक्खन, मलाई खा रहा है और तो और चेहरे पर पोते घूम रहा है. कौन है इसका प्रोड्यूसर ? बंद करो उसे और उसके इस सिरियल को. ये न केवल बालकृष्ण पर अत्याचार है बल्कि उन लाखों करोड़ों बच्चों पर भी अत्याचार है जो ये सब 'एफोर्ड' नहीं कर सकते. अब भला सोचिए ! बालकृष्ण बना बाल कलाकार इतना घी मक्खन खा के बीमार पड़ गया तो ? ये तो सरासर अत्याचार है. हर चेनल का यही हाल है. किसी पर बच्चे नाच रहे हैं. किसी पर हँसा रहे हैं. किसी पर करतब दिखा रहे हैं तो किसी पर गाये ही जा रहे हैं. एक स्लम-डॉग मिलियनेयर ने कितने बच्चे स्लम डॉग बना दिये हैं. कितने बच्चे मिलियनेयर बना दिये हैं. इन सबसे नेताजी को क्या मिला ? फूटी चवन्नी.
जस्सू बेन की जाइंट फ़ेमिली,उतरन ,चक दे बच्चे, नन्हें उस्ताद, हँस दे इंडिया , सब को बंद करो. हमारे देश के बच्चों पर इतना अत्याचार. उनके बचपन का क्या होगा. नहीं..नहीं...नेताजी के रहते बच्चों पर कोई और अत्याचार नहीं कर पाएगा. वे यह सहन नहीं करेंगे. देश के बचपन को वे ऐसे 'वेस्ट' नहीं होने देंगे. अब आप ही सोचिए अगर सभी बच्चे बालिका वधू, उतरन, चक दे बच्चे, और नन्हें उस्ताद वगैरा पर ही लगे रहेंगे तो हमारे ढाबों का क्या होगा. वहाँ कौन आपको दौड़ दौड़ के चाय पिलाएगा. कौन आपके लिए प्लेटें लगाएगा, उन्हें धोएगा,पोंछेगा, ख्याल है आपको. या सारे के सारे ढाबों को बंद कराने पर तुले हैं आप. और एक बात बताइये सब बच्चे अगर विज्ञापनों पर,टी.वी. सीरियलों में, फिल्मों में काम करेंगे और बाकी बचे उन्हे देखने में टाइम खोटी करेंगे तो हमारे पटाखे कौन बनाएगा ? हमारे बीड़ी उद्योग का क्या होगा? फ़िरोज़ाबाद के चूड़ी उद्योग,काँच उद्योग का क्या होगा ? अलीगढ़ के चाकू-ताले का क्या होगा ? मुरादाबाद में पीतल का काम, लखनऊ में चिकन का काम, भिवंडी में ज़री का काम कौन करेगा ?. भदोई में कारपेट कौन बुनेगा? और तो और ईंट भट्टों का तो भट्टा ही बैठ जाएगा. कभी सोचा है आपने या बस इन सब उद्योग-धंधों को चौपट कराने पर तुले हैं. हमारे ट्रेफिक सिग्नल पर भीख माँगने वालों की ही करोड़ों कि इंडस्ट्री है. आप क्या चाहते हैं ? ये बच्चे ये सब काम-धंधा छोड़ कर टी.वी. के अंदर बाहर बस बिगड़ते रहें.
अच्छा एक बात बताइये आप कौन सी इंडस्ट्री को बच्चों से परे समझते हैं. क्या ढाबे,क्या माचिस उद्योग, क्या पटाखा उद्योग,क्या घर में चौका-बर्तन करने वाले क्या सड़क पर करतब दिखाते बच्चे,क्या विज्ञापन, क्या फिल्में, क्या सर्कस सभी जगह तो बच्चे ही बच्चे हैं. अब वक्त आ गया है कि बच्चों का यह शोषण जो कि फिल्मों और सीरियलों के माध्यम से हो रहा है बंद हो. हम शोषण नहीं रोक सकते तो न सही हम फिल्म और सीरियल को तो रोक ही सकते हैं. हम रोक के रहेंगे. हमारे रसायनिक उद्योग ज्यादा इंपोर्टेंट हैं या ये फ़ालतू का नाच-गाना. नहीं..नहीं. चाचा नेहरू के भारत में उनके भतीजे-भतीजियाँ इस प्रकार सीरियलों में अपना बचपन गँवाएँ यह हमें कतई मंजूर नहीं. चाचा नेहरू ने भारत को उद्योग-धंधों में अग्रणी बनाने का सपना देखा था. क्या आप नहीं चाहते उनका ये सपना सच हो. क्या आप नहीं चाहते हमारे देश के बच्चे कालीन उद्योग,काँच उद्योग, चमड़ा उद्योग, भिक्षा उद्योग के क्षेत्र में विश्व में नाम कमाये. फिर ये बच्चों को सीरियलों में डालने कि किसकी साज़िश है. कहीं पड़ोसी देश की तो नहीं. हमें ये सब रोकना है.सब को बंद करना है.
अरे भाई उस कानून का क्या हुआ जो हमने पच्चीस साल पहले बनाया था. हाँ हाँ वही बाल श्रम (रोकथाम और नियमन ) कानून 1986 , किस दिन काम आएगा वो ? लगाओ इन निर्माताओं पर. वो ये क्या कर रहे हैं. बल्कि बच्चों का बचपन और भविष्य दोनों बिगाड़ रहे हैं. हम यह सहन नहीं करेंगे. यह सरासर देश के हित के साथ खिलवाड़ है. अतः जो बच्चे काम कर रहे हैं वो, उनके माँ-बाप, जो उन्हे काम दे रहे हैं वो, और जो दर्शक ये देख रहे हैं वो, इन सब को हमारे देश का, उसकी संस्कृति का कोई ख्याल ही नहीं है. वे सब के सब देशद्रोही हैं.सब को बंद करो.
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