Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Monday, January 18, 2010

pankhuriyan


छेड़ तो दूं में तराना मगर साज़ नहीं है 
गीत मैंने भी लिखे हैं मगर आवाज नहीं है 
मुहब्बत  ! मुहब्बत मैं भी कर लेता 
मगर क्या करूँ वफ़ा का आजकल रिवाज नहीं है .
..................
तुम्हें  चाह  के दौलत और दुनिया की 
परवाह छोड़ दी 
तुम्हें पा के चाँद -सितारों  की  
हसरत छोड़ दी 
तुम्हारा प्यार पा कर सच पूछो तो मैंने 
हर तमन्ना छोड़ दी .
..............
जिन को तेरी नज़र के इशारे मिल गये 
जहाँ मैं उन्ही  को बस जीने के सहारे मिल गये 
जिस के साथ तुम दो कदम चल दीं 
ज़मीं पे उनके निशाँ बन गये 
जिन पर हुई तुम मेहरबान
ख़ुदा की कसम वो बुत भी इन्सां बन गये 
.............
नज़र आती है तू पहाड़ की ऊंची अट्टालिका में
कवि के छंदों में, चित्रकार की तूलिका में 
मधुर शहनाई की जब-जब बजती है धुन 
लगता है तू बैठी है ,डोली में गुमसुम 
.............
गुमगश्ता रातों में चांदनी के फूल चुनते हुए 
मैंने देखा है तुम्हें सपनों के गजरे बुनते हुए 
तुम नहीं गा रहे थे कैसे यकीन करूँ 
में सोया हूँ हर रात तुम्हारे नगमे सुनते हुए 
.............
इलज़ाम-ऐ-वफ़ा के बाद 
तेरे दीवाने पे एक और इलज़ाम है 
क्यों उसके लब पे तू ही तू 
क्योंकर तेरी याद में डूबी हर शाम है 
जानता हूँ मिली नहीं क्या कम है दिखती तो रही 
अब तो मंजिल से मेरी दूरी यही बस दो-चार गाम है 
शायद अब ना खरीदा जाये तुमसे 
वो दिल  का सौदा  दिल  से ही करने  को हैं  तैयार 

मगर मेरे शहर  में तो मुहब्बत का 
मुक्तलिफ़  ही कुछ दाम है 

एक ऐसा  भी दौर -ऐ-गर्दिशी  देखा हमने 

वो देख  के मुंह  फेर  गये
जो बरसों रहा उनकी पहचान  का  बायस 

हुज़ूर  वो मेरा  ही नाम  है 
इस नामावर के बस का नहीं 
दिल  की बात  तुम तक पहुंचाना 
क़ाफ़िर नज़र मिलते ही रो पडा 
ना कोई दुआ, ना कोई सलाम है











1 comment:

  1. Sir,
    I must admit I have popped to a read a good number of your Poems and Shayaries and never before. But I have no idea how to post a response over there, I can only say now, how good you are at describing the stuff. I must admit I find it insightful to read your blogging. Thank you Sir.


    R. P. Shilpkar

    ReplyDelete